जब हम मुगल साम्राज्य की बात करते हैं तो हमारे मन में पहला नाम अकबर आता है। Mughal Empire में अकबर को सबसे प्रभावशाली और सफल राजा के रूप में देखा जाता है। भारतीय इतिहास के पन्नों में इन्हें एक सफल राजा के रूप में दिखाया गया है। इनका सम्राज्य 1556 से 1605 तक चला। मगर उनके कुछ रोचक और अनसुने बातों को आप नहीं जानते होंगे इसके बारे में आज का लेख लिखा गया है।
Akbar History in Hindi में हम अखबार के बचपन, परिवार, युद्ध, प्रेम, और हिंदुओं और हिंदुस्तानियों के प्रति उनकी नीति के बारे में जानेंगे। अगर आप अकबर का इतिहास ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर है।
Akbar History in Hindi | अकबर का इतिहास
Name of Post | Akbar History in Hindi |
राजा का नाम | मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर |
जन्म | 15 अक्टूबर 1542 |
जन्म स्थन | बालाकोट (वर्तमान में पाकिस्तान, सिंध) राजपूत राजा वीरसला के घर |
पिता का नाम | मोहम्मद नसीरुद्दीन हुमायूं |
माता का नाम | सबीना बानो बेगम |
बेटे का नाम | जहांगीर (सलीम)दनियाल मुराद मिर्जा |
पत्नी का नाम | रुकैया बेगममरियम उज जमानी (जोधा बाई)सलीमा बेगमबीबी मरियम |
महत्त्वपूर्ण युद्ध | पानीपत का दूसरा लड़ाई (5 नवंबर 1556)गोंडवान का युद्ध (1564)हल्दीघाटी की लड़ाई (18 जून 1576) |
मृत्यु | 27 अक्टूबर 1605 |
निर्माण | बुलंद दरवाजा फतेहपुर सिकरी |
Akbar History in Hindi
अकबर मुगल साम्राज्य के सबसे महत्वपूर्ण राजा इस वजह से है क्योंकि महज 13 वर्ष की बचने की उम्र में वह राजगद्दी पर बैठे थे। हुमायूं एक सफल राजा नहीं थे इस वजह से शेर शाह शूरी के आक्रमण में इनका साम्राज्य लगभग खत्म हो चुका था।
दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा का एक अलग वर्चस्व चल रहा था, दिल्ली के सबसे समीप राजपूतों का कहर हर किसी में था, ऐसे में इस बच्चे ने धीरे-धीरे चीजों को सिखा समझा और मुगल साम्राज्य का परचम भारत के सबसे बड़े इलाके में फहराया।
इस वजह से हर किसी को जानना चाहिए कि अकबर कौन था? उसका इतिहास कैसा था? कैसे उसने हिंदुस्तान में एक सफल साम्राज्य की नींव रखी। जिसके बारे में अच्छे से और विस्तार से बताया गया है।
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अकबर कौन था? | Who is Akbar?
मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर, तीसरे मुगल सम्राट थे। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1542 के दिन हुआ था। वह मुगल के दूसरे शासक हुमायूं और सबीना बानो बेगम के पुत्र थे। उनके बचपन का नाम अब्दुल फतह जलालुद्दीन अकबर था।
इनके पिता मोहम्मद नसीरुद्दीन हुमायूं थे, जो मुगल साम्राज्य के दूसरे बादशाह थे। उनकी माता सबीना बानो बेगम काबुल से थी। इनके पिता एक सफल बादशाह नहीं थे इस वजह से बहुत कम उम्र में बिहार के शेरशाह सूरी से लड़ाई करने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।
1556 में मार्च 13 वर्ष की आयु में अकबर राजा बने थे। मगर वह उस वक्त किशोर थे इस वजह से जब तक अकबर राजगद्दी संभालने लायक नहीं हुए तब तक बैरम खान मुगल सल्तनत के बादशाह रहे।
उसे वक्त हिंदुस्तान में हिंदू और मुस्लिम की आबादी काफी एक समान थी। अकबर मुगल साम्राज्य का इकलौता ऐसा राजा हुआ जिसे हिंदू और मुस्लिम दोनों से समान सम्मान प्राप्त हुआ। उसे वक्त के नक्शे और मंदिर – मस्जिदों को देखकर पता चलता है कि दोनों धर्म को अकबर प्यार से एक साथ लेकर चलता था।
मगर इसका मतलब बिल्कुल ऐसा नहीं है कि अकबर हिंदू विरोधी नीतियों को लागू नहीं करता था। अकबर की भी कुछ ऐसी नीतियां है जो हिंदू विरोधी थी। आज हम उनके बारे में भी बात करेंगे।
अकबर का बचपन
अकबर के जन्म के समय उसके पिता हुमायूं पस्तून नेता शेरशाह सूरी के आक्रमण से परेशान थे। सबसे पहले 1539 में चौसा का युद्ध हुआ जिसमें मुगल सी हार गई, इसके बाद 1540 में कन्नौज का युद्ध हुआ जिसमें मुगल सेना और भी बुरी तरह से हार गई और जख्मी हुमायूं जैसे तैसे भाग निकला।
उस वक्त अपनी जान बचाने के लिए हुमायूं दिल्ली का महल छोड़कर अलग-अलग राजपूत राजाओं के महल में ठहरता था। इसी दौरान अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट के राजा वीरसला के घर हुआ था। उस वक्त हुमायूं वहां मौजूद नहीं था जन्म के बाद का सारा उत्सव हिंदू रीति रिवाज के अनुसार मनाया गया था।
उसके कुछ सालों बाद हुमायूं ने अकबर को राजा वरन रिवा के राज्य (मध्य प्रदेश) में छोड़ दिया। वहां उनके बेटे राम सिंह प्रथम के साथ हुमायूं का बचपन बीता। वहां उन दोनों की गहरी मित्रता हो गई थी दोनों एक साथ पले बड़े और आजीवन मित्र रहे।
इसके बाद कुछ समय के लिए अकबर अपनी माता के साथ काबुल चला गया। वहां भी हुमायूं की अपने भाइयों के साथ हमेशा ठनी रही, इस वजह से अकबर की शिक्षा अच्छे से नहीं हो सकी।
मगर अकबर का बचपन भी काफी रोचक रहा है। महम अंगा, अकबर की देखभाल करती थी और किशोर अकबर के लिए सलाहकार का काम करती थी। 1562 में अकबर ने उसे सलाहकार की पदवी से हटा दिया था।
बचपन में अकबर बहुत जल्दी राजा बन गए थे, इस वजह से वह ज्यादा पढ़ लिख नहीं सके। मगर उन्हें अलग-अलग साहित्य और धर्म ग्रंथ का शौक था जिस वजह से उन्होंने 4000 से अधिक किताबें दूसरों से पड़वा कर सुनी थी। अपना एक पुस्तकालय भी रखा था। साहित्यिक किताबें और संगीत के अलावा बैरम खान ने उन्हें अलग-अलग युद्ध कलाओं में भी पारंगत किया था।
हालांकि अकबर का शरीर बचपन से ही कमजोर था वह लंबे चौड़े और मजबूत शरीर वाले इंसान नहीं थे। बल्कि एक साधारण कद काठी और थोड़े दुबले पतले राजा थे।
अकबर का परिवार
अकबर के परिवार में उसके माता-पिता के जाने के बाद 4 पत्नियां, 3 बेटे, और 7 बेटियां थी। इसके अलावा अकबर के दरबार में 9 रत्न बैठा करते थे, जिसे वह अपने परिवार के ही सदस्य जैसा मानता था।
अकबर के कुछ भाई और बहन भी थे बहन की शादी हो गई थी इस वजह से उनके साथ अकबर का कोई खास राब्ता नहीं रहा। मगर अकबर के कुछ सौतेले भाई थे जिसमें मिर्जा मोहम्मद हाकिम के साथ उनके अशांत संबंध रहे।
मोहम्मद हाकिम ने कई बार अकबर के राज्य में विद्रोह करने का प्रयास किया मगर हर बार असफल रहे। कई बार अकबर के महल में उनकी जान लेने की भी कोशिश की गई मगर नवरत्नों की समझदारी के कारण कई बार अकबर की जान बची है।
अकबर की पत्नियां | Akbar Wife
अकबर की कुल चार पत्नियों थी। जिसमें उसकी पहली शादी अपने चाचा के बेटी रुकैया बेगम सहिबा से हुई थी। इसके बाद उसने तीन हिंदू राजकुमारी से शादी की थी।
उसके सभी शादियों का उल्लेख अबुल फजल ने आइन–ए–अकबरी में किया है। अकबर की दूसरी और पहली हिंदू शादी जयपुर के राजा भारमल की बेटी जोधा से हुई थी। इसके बाद बीकानेर के कल्याणमल की भतीजी से भी शादी की थी। सभी का नाम शादी के बाद बदल दिया गया था। जोधा बाई का नाम भी मरियम-उज़-ज़मानी रखा गया था।
अकबर की पत्नी |
मरियम-उज़-ज़मानी (जोधा बाई) |
रुकैया बेगम |
Salima Sultan Begum |
बीवी मरियम |
अकबर के बाल बच्चे
अकबर की चार पत्नियां थी जिनसे 7 बेटी और 3 बेटे थे। उसके तीनों बेटे अकबर के साम्राज्य के बारे में जानते थे, इस वजह से अगला बादशाह बनने के लिए वह आपस में लड़ते रहते थे। एक दूसरे को मारने की एक से एक साजिश करते थे अंत में केवल जहांगीर बचता है जो अकबर के बाद शहंशाह बनता है।
इसके अलावा अकबर की 7 बेटी थी। जिसमे सबसे बड़ी Shakr-un-Nissa Begum, फिर Aram Banu Begum, Meherunnisa, Chánum Sultán Bégam, और Mahi Begum थी।
अकबर का बेटा | अकबर की बेटी |
1. नूर आई दीन मुहम्मद सलीम (जहांगीर) | 1. शकर उन निस्सा |
2. दनियाल | 2. आराम बानू बेगम |
3. मुराद मिर्जा | 3. मेहरुन्निसा |
4. चानूम बेगम | |
5. माही बेगम | |
6. Not Known | |
7. Not Known |
अकबर ने क्यों नहीं करवाई बेटी की शादी
अकबर ने अपनी एक भी बेटी की शादी नहीं करवाई थी। इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि अकबर उसे वक्त सबसे बड़ा बादशाह था। अगर वह अपनी बेटी की शादी किसी से करवाता तो उसे उसके सामने झुकना पड़ता।
अकबर किसी के सामने भी झुकना नहीं चाहता था इस वजह से उसने अपनी बेटियों को आजीवन अकेले रखा और उनकी जिंदगी अकबर के महल में कैद में ही बीत गई।
अकबर का मुगल हरम | Mughal Harm
अकबर बहुत छोटी उम्र में राजा बन गया था इस वजह से उसकी मनमानी बढ़ गई थी। उसने अपनी अय्याशियों के लिए एक हरम बनवाया था। सरल शब्दों में यह एक छोटा महल था जहां कुछ खूबसूरत लड़कियों को वह अपने अय्याशी के लिए रखता था।
मुगल काल में यह हरम अकबर के बाद भी सदियों तक चलता रहा। इसमें हिंदू, मुस्लिम, अफगानी, सेख, बौद्ध, और लगभग उस समय के सारे धर्म की लड़कियां मौजूद थी। एक अंदाज के मुताबिक अकबर के हरम में लगभग 300 रानियां थी।
इसमें सबसे पहले मीना बाजार से लड़कियों को लाने की परंपरा शुरू की गई थी। इस बाजार को दिल्ली में रोजगार की बढ़ोतरी और व्यापार बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। मगर शुक्रवार को जब जुम्मे की नमाज होती है, तब इस दिन बाजार में केवल महिला आ सकती थी। वहां अकबर के कुछ वफादार सैनिक बाजार की सबसे खूबसूरत महिलाओं का चयन करते थे, और किसी बहाने उन्हें अकबर के महल भेज दिया करते थे।
इस तरह हर शुक्रवार को हरम में कुछ लड़कियां आती थी। उनमें से कुछ को हमेशा के लिए वहां रख लिया जाता था, तो कुछ को मार दिया जाता था। इस तरह बुरखे और घूंघट में छपी लड़कियों को ढूंढना आसान हो गया और उसकी अय्याशी का खेल काफी लंबे समय तक चला।
एक बार एक सेख की लड़की को हरम में रखना के कारण बवाल काफी बड़ा हो गया और सभी धर्म के लोग एकजुट होकर मीना बाजार और इस पूरे कार्यक्रम के विरोध में खड़े हो गए। अकबर ने इस विद्रोह को शांत करने के लिए काफी जोर लगाया मगर एक गुप्त बैठक हुई जिसके बाद अकबर को मारने का षड्यंत्र रचा गया। इसमें एक बैठक के दौरान अकबर को जहरीले तीर से मार कर जख्मी किया गया। हालाकि उसकी जान बच गई मगर इसके बाद मीना बाजार की रौनक थोड़ी कम हो गई। हालांकि मुगल हराम को बंद नहीं किया गया और दूसरे मुगल शासको ने भी इसके खूब मजे लिए।
अकबर के पास 9 ऐसे लोग थे जो दरबार के मुख्य थे। अकबर हर तरह की परेशानी में इन्हीं 9 लोगों से राय सलाह लेने के बाद फैसला सुनाता था। इन्ही 9 लोगों को नवरत्न कहा जाता था हर व्यक्ति अपनी किसी खास कारण की वजह से वहां बैठता था।
- बीरबल – एक हाजिर जवाब सलाहकार था जो महाराज के बहुत करीब था। यह अपनी समझदारी और हाजिर जवाबी के कारण वहां बैठता था।
- मान सिंह – यह जयपुर के कछवाहा वंश का राजपूत राजकुमार था। अकबर का सेनापति था और इसकी फुआ का विवाह अकबर से हुआ था। इसकी वजह से अकबर ने बहुत सारी लड़ाइयां जीती थी।
- अबुल फजल – यह आईने अकबरी और अकबरनामा का रचयिता है।
- फकीर आजियो दिन – यह एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे, अकबर के लिए वालिद का दर्जा रखते थे और प्रमुख सलाहकार थे।
- अबुल रहीम खान – अकबर के सबसे वफादार बैरम खान के बेटे थे। बहुत बड़े कवि और साहित्यकार भी थे।
- मुला दो प्याजा – अपनी तेज बुद्धि और जल्दी हिसाब करने की कला के कारण अकबर के महत्वपूर्ण सलाहकार थे।
- राजा टोडरमल – खुद जयपुर के राजकुमार थे, पर अकबर के लिए व्यापार और वित्त मंत्री का काम करते थे।
- तानसेन – बहुत महान संगीतकार और कवि थे।
- बैजू बावरा – बांसुरी बजाने की कला में पारंगत थे और पूरे सभा का मन मोह लेते थे।
अकबर का युद्ध | Akbar War List
मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर का जन्म सिंह के राणा विरसला के घर हुआ था और उनका बचपन भी राजपूत के साथ बीता था। इस वजह से वह हिंदू और राजपूत की काफी इज्जत करते थे और उनकी रणकला से भी काफी परीक्षित थे। इस वजह से उन्होंने राजपूतों के साथ कोई भी लड़ाई आमने-सामने नहीं लड़ी है।
अपने पूरे जीवन काल में अकबर ने 36 लड़ाइयां लड़ी है जिसमें घरेलू और विदेशी आक्रमण भी शामिल है। उनमें से कुछ प्रचलित लड़ाई पानीपत की लड़ाई, हल्दीघाटी की लड़ाई, आदि शामिल है।
तिथि | युद्ध |
1556 | मालवा युद्ध अभियान (बाज बहादुर और बैरम खान के बीच) |
5 Nov 1556 | पानीपत का दूसरा युद्ध (हेमू और अकबर के बीच) |
1572 | दाऊद खान और मानसिंह के बीच |
1564 | वीर नारायण और दुर्गावती का आसिफ खान के साथ युद्ध |
1570 | बीकानेर के चंद्रसेन और जोधपुर के भारमल के साथ संधि |
1571, 72, 73 | 3 युद्ध अभियान के बाद गुजरात पर विजय और समुद्र से व्यापार शुरू |
1581 | मानसिंह और दूसरे राजपूत राजाओं ने अकबर के लिए कबूल जीता |
1586 | युसुफ खां व याकूब खां ने अकबर के लिए कश्मीर जीता |
1601 | असीरगढ के शासन नर बहादुर पर विजय प्राप्त किया |
मालवा युद्ध अभियान
1556 में राज्याभिषेक होने के बाद अकबर ने अपना पहला युद्ध 1561 में लड़ा। इस लड़ाई में वह बैरम खान और अहमद खान के साथ जुड़ा, और 29 मार्च 1561 को मालवा की राजधानी सारंगपुर में मुगल सेना का कब्जा हो गया।
अकबर के राजा बनने के बाद यह मुग़ल की पहली जीत थी। मालवा के राजा बाज बहादुर, हमेशा इयाशी में लिप्त रहने वाले राजा थे। वह इस लड़ाई के बाद महल छोड़ कर भाग गए थे।
इस लड़ाई में अकबर और उसका वजीर बैरम खान उस जमाने के सबसे ताकतवर शासक माने जाने वाले मोहम्मद आदिल शाह सुर और उसके वजीर हेमू के खिलाफ लड़ा।
हेमू एक ताकतवर योद्धा था जो हाथी की सेना के साथ लड़ाई करता था। इस लड़ाई में हेमू के पास 1500 हाथी अधिक थी और शुरुआत से ही हेमू की सेना लड़ाई को जीत रही थी। मगर दुर्भाग्य वर्ष एक तीर हेमू की आंख में लगा और वह हाथी से गिर गया, इसके बाद हेमू को गिरफ्तार करके उसकी हत्या कर दी गई और यहां से युद्ध पलट गया।
निर्णय – हुमायूं की मौत के बाद से दिल्ली पर कब्जा करने के लिए अफगान और मुगल बादशाह के बीच लड़ाई चल रही थी। मगर हेमू की मौत के बाद अफगान राजा दिल्ली से पीछे हट गया। इसके बाद अकबर अपने परिवार के साथ दिल्ली आ पाया।
बंगाल पर विजय
उस वक्त बंगाल, बिहार, झारखंड अफगान राजा के नेतृत्व में आता था। 1572 में दाऊद खान राजगद्दी पर बैठता है वह एक वीर योद्धा था इस वजह से उसने अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
मुगल और अफगान राजा दाऊद खान के बीच 1572 में जौनपुर में लड़ाई हुई। अकबर की तरफ से राजा टोडरमल और मानसिंह लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे। दोनों राजपूत राजाओं ने दाऊद खान को परास्त किया और मुगल साम्राज्य को बंगाल तक बढ़ाया।
गोंडवाना का विजय
गोंड़वाना उस समय दक्षिण की तरफ काफी बड़ा और फलाफेला साम्राज्य था। इसके शासक राजा वीर नारायण थे, मगर वीर नारायण छोटे थे और पिता की मृत्यु हो गई थी इस वजह से उनकी मां रानी दुर्गावती सर कार्यभार संभालती थी।
अबुल फजल ने रानी दुर्गावती की सुंदरता और उनके सूझबूझ की काफी तारीफ की है। रानी दुर्गावती एक सफल शासिका थी उसने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
इस वजह से 1564 में अकबर की तरफ से आसिफ खान ने रानी दुर्गावती और वीर नारायण के खिलाफ युद्ध किया। लड़ाई के बीच में वीर नारायण बुरी तरह जख्मी हो गए इस वजह से दुर्गावती ने उन्हें पास के महल चौरागढ़ में भेजने का प्रबंध किया। इस बीच वह दुश्मनों से गिर गई और दुश्मन उन्हें पकड़े इससे पहले उन्होंने अपनी जान ले ली।
अगले दिन मुगल सैनिक चौरागढ़ पर चढ़ाई करते है और वीर नारायण अपने कुछ साथियों के साथ लड़ते हुए शहीद हो जाते हैं।
कालिंजर विजय
बुंदेलखंड में कालिंजर का किला राजा रामचंद्र के अधीन था। वह एक शांतिप्रिय राजा थे, चित्तौड़ और रणथंबोर के भरोसे वह सुरक्षा का इंतजाम कर रहे थे। अकबर ने उनके साथ संधि करने का प्रस्ताव रखा, उन्होंने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया और खुद का राज्य मुगल सल्तनत में मिल लिया।
जोधपुर और बीकानेर के साथ संधि
बीकानेर के राजा का पुत्र चंद्रसेन भी अकबर की संधि को स्वीकार करता है और उसके अधीन आ जाता है।
जोधपुर के राजा भारमल अपने बड़े भाई के मरने के बाद उनके बेटे को राजा ना बनाकर खुद राजा बन गए थे। उनका बेटा अपना राज्य वापस प्राप्त करने के लिए विद्रोह करने वाला था इस वजह से उन्होंने अपनी बेटी जोधा का विवाह अकबर के साथ करवा दिया। ताकि अकबर के साथ होने वाला युद्ध भी रुक जाए और उनके राज्य में होने वाले विद्रोह को अकबर शांत कर दे।
मेवाड़ के लिए हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर ने अपनी कुशल नीति के जरिए बहुत सारे राजपूत राजाओं को अपने अधीन कर लिया था। इसके साथ-साथ अन्य लड़ाइयों को जीतने के लिए इन्हीं राजपूत राजाओं का इस्तेमाल भी किया करता था।
जैसे – अफगान विद्रोह को रोकने के लिए मानसिंह, बंगाल विजय के लिए राजा टोडरमल, सोलापुर विजय के लिए मानसिंह आदि।
ऐसे में वह इसी राजपूत गुट के महाराणा प्रताप की स्वतंत्रता, प्रमुखता, और श्रेष्ठता को कैसे स्वीकार करता। इस वजह से उसने महाराणा प्रताप के खिलाफ अपने अलग-अलग सेनापतियों को कई बार लड़ाई के लिए भेजा। इसमें महाराणा प्रताप ने तीन बार निर्णायक तरीके से अकबर के सेनापतियों को मार दिया और जीत हासिल की, तो लगभग दो बार उन्हें लड़ाई छोड़कर भागना भी पड़ा।
अकबर और महाराणा प्रताप का युद्ध | Akbar and Rajput
18 जून 1576 में अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी की लड़ाई हुई थी। अकबर उस समय बहुत सारे राजपूत राजाओं को अपने आधीन मिला चुका था। महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा थे और उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।
अकबर को इस बात से बहुत दुख लगा कि जहां ज्यादातर राजा इसकी आधीनता स्वीकार कर लेते हैं वहां महाराणा प्रताप स्वतंत्र रहने की मांग क्यों कर रहे हैं। उसने अपने सबसे बहादुर सेनापति जो इस राजपूत गढ़ का था, मानसिंह को मेवाड़ संधि के लिए भेजा। महाराणा प्रताप मानसिंह को राजपूत कुल का कलंक मानते थे इस वजह से उसकी बेइज्जती करके वहां से भगा दिया। इसके बाद मानसिंह ने 80000 सैनिकों के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई की थी।
हल्दीघाटी के युद्ध का पहला दिन
यह इतिहास के कुछ सबसे भीषण लड़ाईया में से एक है। यह लड़ाई मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और अकबर के नवरत्न और आमेर के राजा मानसिंह के बीच हुई थी। मानसिंह की सेना बड़ी थी, उसमें हाथियों की संख्या ज्यादा थी, दूसरी तरफ महाराणा प्रताप की सेना में ज्यादातर घुड़सवार और तीरंदाज थे। यह लड़ाई शुरुआत से महाराणा प्रताप जीत रहे थे मगर बीच लड़ाई में उनके भाई उनको धोखा दे देते हैं।
जब लड़ाई के बीच सब कुछ महाराणा प्रताप के विरुद्ध जाने लगता है तब भील जनजाति महाराणा प्रताप की सहायता करते है। भील महाराणा प्रताप को लड़ाई से निकाल कर ले जाते हैं, चेतक मर जाता है, और लड़ाई का निर्णय अधूरा रह जाता है।
हल्दीघाटी के युद्ध का दूसरा दिन
महाराणा प्रताप 16000 सैनिकों के साथ मेवाड़ की रक्षा कर रहे थे। उसमें से केवल 4000 सैनिक बच्चे थे और 300 भील जनजाति के लोग बचे थे। पहले दिन की लड़ाई से मानसिंह को बहुत हानि होती है उसकी कुल सेना का लगभग आधा हिस्सा खत्म हो जाता है। मगर अभी भी मानसिंह की सेना महाराणा प्रताप की सेना के मुकाबले बहुत बड़ी थी।
दूसरे दिन की लड़ाई में महाराणा प्रताप 3000 की सैनिकों के साथ उतरते है। उधर मानसिंह भी 10000 सैनिकों की सेना के साथ लड़ाई में उतरता है। यह लड़ाई 3 घंटे से अधिक समय तक चली थी, जिसमें महाराणा प्रताप जख्मी हो जाते हैं और भील सैनिकों की मदद से मन मारकर वहां से फिर हटाना पड़ता है।
हालांकि इस लड़ाई में मानसिंह आगे बढ़ जाता है और गोगुंदा के आसपास के क्षेत्र पर कब्जा जमा लेता है। इस लड़ाई में महाराणा प्रताप का वफादार हाथी राम प्रसाद पकड़ा जाता है। लेकिन महाराणा प्रताप अभी भी नहीं हारते हैं अपने कुछ सैनिक और भीलों के साथ जंगल में छुप जाते है। इस दिन भी लड़ाई का निर्णय नहीं हो पता है।
लड़ाई के अगले कुछ दिन
महाराणा प्रताप अपने बचे हुए 1000 राजपूत सैनिकों के साथ जंगल से छुप-छुप कर छापा मार लड़ाई लड़ते है। कुछ दिनों तक यह लड़ाई चलती है और मानसिंह को गोगुंदा के क्षेत्र से पीछे हटाना पड़ता है।
अकबर महाराणा प्रताप की इस बहादुरी से बहुत प्रभावित होता है और मानसिंह को वापस बुला लेता है। अकबर यह ऐलान करता है कि जब तक महाराणा प्रताप जीवित रहेंगे वह मेवाड़ की तरफ आक्रमण नहीं करेगा। इसके अलावा यह निर्णय होता है कि ना महाराणा प्रताप को अकबर ने हराया और ना अकबर कभी हारा।
हालांकि इसके कुछ महीनों बाद एक युद्ध अभ्यास के दौरान महाराणा प्रताप बुरी तरह जख्मी हो जाते हैं और बीमार हो जाते है। इसी बीमारी में वह अपना प्राण त्याग देते हैं इसके बाद अकबर मेवाड़ पर कब्जा कर लेता है।
अकबर की नीतियां | Akbar ki dharmik niti ka varnan
अकबर एक ऐसा राजा था जो उसे जमाने में हिंदू और मुस्लिम को साथ लेकर चलता था। इसके बावजूद कुछ नीतियां हिंदू विरोधी थी तो कुछ नीतियां हिंदू के पक्ष में भी थी। आपको अकबर के दोनों प्रकार के नीतियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए जिसे नीचे सूचीबद्ध किया गया है –
अकबर 1556 से 1605 तक मुगल शासक रहा, इस बीच उसने हिंदुओ के लिए कुछ नियम बनाए जिसे सुलह-ए-कुल का नाम दिया। इसका मतलब सार्वभौमिक शांति नियम होता है।
- धार्मिक सहिष्णुता – अकबर धर्मों के लिए धर्मस्थल बावत था। इसके अलावा उसने दिन- ए- लाही नाम का धर्म शुरू किया था जिसमें सभी धर्मो का मिश्रण था, और हर घर में लोग उसमे जुड़ सकते थे।
- जजिया का समापन – यह एक बहुत पुराना कर था, जो मुसलमान शासित इलाकों में गैर मुसलमानों पर लगाया जाता था। 1564 में अकबर ने इसे समाप्त कर दिया था और हिंदुओं से किसी भी प्रकार का जजिया कर नहीं लेता था।
- राज दरबार में हिंदुओं की नियुक्ति – अकबर के राज दरबार में बहुत बड़ी संख्या हिंदू कार्यकर्ता की थी। वह मंत्री जैसे पद पर भी हिंदुओं की नियुक्ति करता था और न्यायधीश के रूप में हिंदू पंडितों की नियुक्ति करता था।
अकबर की हिंदू विरोधी नीति
- जीत के बाद हिंदुओं की बेइज्जती का फतहनामा – हर बार अपनी लड़ाई में जीत हासिल करने के बाद अकबर हिंदुओं को बेइज्जत करता था। इसका एक उदाहरण देते हुए हमने चित्तौड़ के युद्ध के बाद जारी किए गए फतहनामा के कुछ अंश को नीचे प्रस्तुत किया है।
“अल्लाह की ख्याति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया।“ (फतहनामा-ए-चित्तौड़, मार्च 1586,नई दिल्ली)
- हिंदुओं को मारने पर इनाम – अखबर के दरबारी द्वारा लिखी गई किताब “मुन्तखाव-उत-तवारीख” के कुछ अंश को नीचे प्रस्तुत किया गया है।
“मै दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदायूँनी, युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोंकर शाहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की।” “उन्होने प्रसन्न होकर मुझे मुठ्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं।“(मुन्तखाब-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदायूँनी, खण्ड II, पृष्ठ 383,अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ 108)
अकबर की मृत्यु कैसे हुई?
अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को फतेहपुर सीकरी में 63 वर्ष की आयु में हुई थी। अकबर ने अपने पूरे जीवन में 36 लड़ाइयां लड़ी थी। मगर इनमें से केवल 4 लड़ाइयों में वह आमने-सामने दुश्मन के खड़ा था बाकी लड़ाइयां इसके सेनापति जीत कर लाते थे।
अकबर अलग-अलग प्रकार की नीति और साहित्य पढ़ता था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने साथ मिलकर अपना साम्राज्य विस्तार कर सके। अकबर ने कुल 63 वर्ष राज किया था, और उसे जमाने में सबसे बड़े साम्राज्य पर राज किया था जिसमें अफगानिस्तान पाकिस्तान कश्मीर से बंगाल तक का साम्राज्य शामिल है।
इतने बड़े साम्राज्य में वह किसी विद्रोह या किसी षड्यंत्र की वजह से नहीं मारा था। उसकी मृत्यू डायरिया से हुई थी, उस वक्त इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था। वह अपने 63वें जन्म दिन के 12 दिन बाद बीमार पड़ा और बिस्तर पर बीमारी से परेशान हो कर मर गया।
अकबर के इतिहास से जुड़े कुछ रोचक तथ्य | Facts About History of Akbar
- 1556 में अकबर 13 वर्ष की आयु में मुगल साम्राज्य का तीसरा शासक बनता है।
- 1556 में बैरम खान ने इसका राज अभिषेक किया और जब तक अकबर 20 वर्ष का नहीं हुआ तब तक उसने मुगल साम्राज्य को संभाल।
- अकबर ने अपने जीवन के दो महत्वपूर्ण लड़ाई 1556 में ही लड़ी थी। उस वक्त वह 13 वर्ष की आयु में बैरम खान के साथ लड़ाई में गया था।
- बैरम खान ने अकबर को धोखा दिया था और राज्य हड़पने की कोशिश की थी। मगर मुगल के प्रति उसके एहसान को देखते हुए अकबर ने उसे माफ कर दिया था।
- अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त करने के बाद समुद्र से व्यापार शुरू किया था।
- जब समुद्र से नए व्यापारी आ रहे थे तब अकबर ने बुलंद दरवाजा और फतेहपुर सीकरी नाम का शहर बनवाया था।
- अकबर अनपढ़ था, मगर उसने अपने पूरे जीवन काल में 24000 से अधिक किताबें को सुना था और हर विषय में ज्ञान रखता था।
FAQ on Akbar History in Hindi
Q. क्या अकबर एक अच्छा राजा था?
अकबर के शासनकाल में बाकी मुगल शासको के मुकाबले कम धार्मिक आंदोलन और विद्रोह हुए थे इस वजह से कुछ जगहों पर इसे एक अच्छे राजा के रूप में दिखाया जाता है।
Q. अकबर का जन्म कब हुआ था?
अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट के राजा वीरसला के घर हुआ था।
Q. अकबर राजा कब बना?
अकबर 13 वर्ष की आयु में 1556 में तीसरा मुगल शासक बना।
Q. अकबर सबसे सफल मुगल शासक क्यों है?
उस जमाने में सभी गैर मुसलमान के राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ करते थे। मगर अकबर के साम्राज्य में कम आंदोलन होते थे, इसने अपने महल में हिंदू मंत्रियों को जगह दी थी, हिंदू रानिया से शादी की थी, और अन्य हिंदू परंपरा और मुस्लिम परंपराओं को साथ लेकर चला था। इस वजह से इसे अन्य मुगल शासक के मुकाबले ज्यादा सफल माना जाता है।
Q. अकबर का बेटा कौन था?
अकबर के तीन बेटे थे जहांगीर, दानिया, और मुराद मिर्जा।
Q. अकबर की बेटी कौन थी?
अकबर की कुल सात बेटी थी जिसमें मेहरुन्निसा और आराम बानो बेगम, उसकी सबसे लाड दुलारी बेटी थी।
Q. अकबर के बाद मुगल शासक कौन बना?
अकबर के बाद जहांगीर ने मुगल साम्राज्य को संभाला।
Q. अकबर को किसने हराया?
अकबर उसे जमाने के बहुत बड़े साम्राज्य पर राज करता था मगर उसे किसी ने युद्ध में कभी नहीं हराया था।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने आपको Akbar History in Hindi के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी है जिसे पढ़कर आप आसानी से समझ सकते हैं कि अकबर का इतिहास क्या था। इसमें हमने आपको यह बताने का प्रयास किया है कि अकबर कैसा राजा था, और उसके मुगल साम्राज्य से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी को भी इस लेख में बताया गया है।