Pandav Aur Kaurav Ki Jati Kya Thi – क्या आपको पता है पांडव और कौरव किस जाति के थे? आज से हजारों साल पहले भारत में जाति प्रथा को किस प्रकार से विभाजित किया गया था। उस वक्त पांडव कौरव द्रौपदी और इस तरह के अन्य लोग किस जाति से ताल्लुक रखते थे। इसे समझाने के लिए आज का लेख लिखा गया है जिसमें हम आपको बताएंगे कि पांडव कौन थे? वे कहां से आए थे? और कौरव कौन थे? किस तरह इन दोनों के बीच युद्ध शुरू हुआ और तब से लेकर आज तक भारत में जाति प्रणाली में किस प्रकार का बदलाव देखने को मिलता है।
महाभारत हिंदू धर्म के कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ में से एक माना जाता है। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से पांडव और कौरव की कहानी दी गई है। Pandav Aur Kaurav Ki Jati Kya Thi और उनका जन्म कैसे हुआ साथी उनके पूर्वज कौन से जाति से थे इस तरह के कुछ सवालों का जवाब आज के लेख में दिया गया है।
- जरूर पड़े – महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था
Pandav Aur Kaurav Ki Jati Kya Thi | पांडव और कौरव किस जाति के थे?
अगर आप पांडव और कौरव की जाति क्या थी के बारे में जानकारी ढूंढ रहे है तो आपको बता दें कि पांडव और कौरव सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।
आज से हजारों साल पहले भारत में जाति प्रथा को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया गया था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आते थे। क्षत्रिय भी दो प्रकार के होते थे एक चंद्रवंशी क्षत्रिय और दूसरे सूर्यवंशी क्षत्रिय। पांडव के पूर्वज सूर्यवंशी क्षत्रिय थे और कौरव के पूर्वज चंद्रवंशी क्षत्रिय थे। ऐसा कैसे हुआ और दोनों के पूर्वज कहां से आए थे साथ ही कौरव के बाद चंद्रवंशी क्षत्रिय के राजा कौन हुए इनके बारे में नीचे जानकारी दी गई है।
पांडव कौन थे ?
महाभारत के पांच मुख्य पात्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को पांडव कहा जाता है। ये सभी आपस में भाई और कुरु वंश के राजा पांडु के पुत्र थे।
राजा पांडु की दो पत्नियां थी कुंती और माद्री। माता कुंती के तीन पुत्र युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन थे एवं माता माद्री से दो पुत्र हुए – नकुल और सहदेव।
ये पांचों संताने सामान्य तौर पर राजा पांडु को भगवान के आशीर्वाद से प्राप्त हुए थे। जब लंबे समय तक पांडु को कोई संतान नहीं हुई तो कुंती और माद्री ने देवताओं का आह्वान किया। कुंती ने देवराज इंद्र और पवनदेव का आह्वान किया, जिसके उपरांत युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन हुए। उसी तरह माद्री ने दो अश्विनी कुमारों का आह्वान किया तो नकुल और सहदेव हुए। युधिष्ठिर यमदेव के अंश माने जाते है, तो भीमसेन पवन देव के, तथा अर्जुन इंद्रदेव के अंश माने जाते है। वही नकुल और सहदेव अश्वनी कुमार नासत्य और दर्श के अंश माने जाते है। इसीलिए पांडवों को देवपुत्र भी कहा जाता है।
कौरव कौन थे?
राजा कुरु से चले आ रहे वंशज कौरव कहलाते थे। महाभारत काल में कुरुवंशज कौरव और राजा पांडु के वंशज पांडव कहलाए। कौरव हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और गांधारी के पुत्र थे। कौरव महाभारत के विशिष्ट पात्र थे और संख्या में 100 थे।
युधिष्ठिर के जन्म के पश्चात जब गांधारी को यह मालूम हुआ कि पांडु की पत्नी कुंती को पुत्र की प्राप्ति हुई है तो गांधारी के मन में भी पुत्रवती होने की इच्छा जागृत हुई तब गंधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान लिया। जब 2 वर्ष तक कोई संतान नहीं हुई तो गुस्से में गांधारी ने अपने पेट पर मुक्के से प्रहार किया, जिससे गर्भ गिर गया। वेदव्यास का वरदान बेकार न जाए इसलिए उन्होंने गांधारी से जल्द सौ कुंड तैयार करवा कर उसमें गर्भ से निकले मांस पिंड को रखा और अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे पिंड सौ बराबर टुकड़ों में बट गया। इसके बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन, उसके बाद धृतराष्ट्र के 99 पुत्रों का जन्म हुआ।
यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि महाभारत युद्ध में कुरु वंश के नाम पर सिर्फ एक ही योद्धा थे जिनका नाम भीष्म पितामह था।
पांडव कौन सी जाति के थे?
द्वापर युग में जाति व्यवस्था नहीं बल्कि वर्ण व्यवस्था थी – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, ये चार वर्ण माने जाते थे। पांडव जन्म और कुल से सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। जो कुरुवंशज थे और कुरु राजवंश से ताल्लुक रखते थे। इसलिए पांडवों की जाति सूर्यवंशी क्षत्रिय मानी जाती है। आज जिस जाति को राजपूत से संबोधित किया जाता है आज से हजारों साल पहले उसे ही क्षत्रिय जाति मानी जाती थी।
आपको बता दें कि आज से हजारों साल पहले जब भारत में वर्ण व्यवस्था चल रही थी तब क्षत्रिय जाति में आज के सिख, गुज्जर, राजपूत और इस तरह की कुछ अन्य ओबीसी जातियां भी आती थी। मगर वक्त के साथ जाती प्रणाली में बदलाव हुआ और क्षत्रिय कुल बढ़ते हुए अलग-अलग छोटी छोटी जातियों में बट गया।
कौरव कौन सी जाति के थे?
धरती के कुछ पहले मनुष्य में चंद्रवंशी राजा नहुष के पुत्र ययाति का जन्म हुआ था। इनसे आगे बढ़ने वाले वंशज खुद को चंद्रवंशी क्षत्रिय मानते थे। राजा कुरु तक केवल चंद्रवंशी क्षत्रिय होते थे, मगर राजा पुरु के पुत्रों ने खुद को सूर्यवंशी राजा कह कर समदोधित किया। राजा पुरु के उसूलों पर चलते हुए उनके वंश को आगे बढ़ाने का काम राजा पांडु ने किया जिनके बेटों को पांडव कहा गया। बल्कि राजा कुरु के कुरुवंश को आगे बढ़ाने का कार्य धीत्रास्त ने किया जिनके बेटों को कौरव कहा गया।
आपको बता दें कि राजा पांडु और धृतराष्ट्र दोनों भाई थे। मगर राजा पांडू के पुत्र सूर्यवंशी क्षत्रिय में आते थे और राजा धृतराष्ट्र के पुत्र चंद्रवंशी क्षत्रिय में आते थे।
पांडव और कौरव वंश का इतिहास/ वंशावली
पांडव के वंसज कौन है इसे समझने के अनुसार आपको बता दें की पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि का जन्म हुआ। अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से इलानंदन पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति, और ययाति के पांच पुत्र थे – पुरु, यदु, तुर्वासु, द्राहुयु और अनु। पुरु वंश में महान प्रतापी राजा भरत का जन्म हुआ और भारत कुल में सूर्य उपासक, वेदों को मानने वाला राजा संवरण का जन्म हुआ। राजा संवरण ने सूर्य देव की घोर तपस्या कर सूर्य देव की पुत्री ताप्ती/तपनी से विवाह किया।
संवरण और ताप्ती से महान प्रतापी एवं तेजस्वी राजा कुरु का जन्म हुआ। कुरु वंश का पहला पुरुष, राजा कुरु थे जिनके नाम पर कुरु वंश की शाखाएं निकली और आगे बढ़ी। कुरु वंश में भारतवंशी राजा शांतनु का जन्म हुआ जो हस्तिनापुर के राजा प्रतीप के पुत्र थे।
राजा शांतनु का पहला विवाह देवनदी गंगा से हुआ था जिससे भीष्म (देवव्रत) का जन्म हुआ। गंगा के जाने के बाद शांतनु ने दूसरा विवाह सत्यवती से किया। सत्यवती से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में गंधर्वों द्वारा मारा गया। चित्रांगद के मृत्यु के बाद भीष्म ने विचित्रवीर्य का विवाह काशी नरेश की पुत्रियां अंबिका और अंबालिका से करवा दिया। अंबिका से पुत्र धृतराष्ट्र हुए और अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ। धृतराष्ट्र के सौ पुत्र कौरव कहलाए तो वहीं पांडु के पांच पुत्र पांडव कहलाए।
क्या पांडव यादव जाति के थे?
ब्रह्मा जी के वंश में चंद्रवंशी राजा नहुष के पुत्र ययाति का जन्म हुआ था। ययाति के पांच पुत्र थे – पुरु, यदु, तुर्वासु, द्राहुयु और अनु। ययाति के बाद इन पांच पुत्रों ने संपूर्ण धरती पर अपने राज्य का विस्तार किया। पुरु से पौरव वंश, यदु से यादव वंश, तुर्वासु से यवन वंश, द्राहुयू से भोज तथा अनु से मलेच्छ वंश की स्थापना हुई।
ययाति ने पुरु को अपना पैतृक प्रभुसता वाला क्षेत्र प्रदान किया। आगे चलकर पुरु के वंश में दुष्यंत और भरत जैसे राजा हुए। भरत के कुल में राजा कुरु का जन्म हुआ। राजा कुरु के नाम से ही वंश का नाम कुरुवंश कहलाया। कुरुवंश में ही राजा शांतनु हुए और शांतनु से गंगा पुत्र देवव्रत (भीष्म) हुए। भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा। शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। पांडु और धृतराष्ट्र विचित्रवीर्य के पुत्र थे। जिनके संतानों को पांडव और कौरव के नाम से जाना जाता है। पांडव महाराजा पुरु के वंशज होने के कारण सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।
पांडवों की माता कुंती थी जो यदुवंशी राजा शूर सेन की पुत्री थी और भगवान श्री कृष्ण की बुआ थी। श्रीकृष्ण राजा यदु के वंशज थे।
पांडव के आगे के वंशज कौन है?
जब महाभारत का युद्ध कुरुवंश के नाश के साथ समाप्त हो गया तब अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उतरा ने परीक्षित नामक पुत्र को जन्म दिया। परीक्षित को पांडवों ने स्वर्गवास से पहले युधिष्ठिर द्वारा हस्तिनापुर के गद्दी पर बैठाया गया। परीक्षित हस्तिनापुर के राजा हो गए। परीक्षित के वंश में एक राजा हुए जिनका नाम तोमर था, जिनके नाम पर इस वंश का नाम तोमर वंश ( तंवर वंश) कहलाया।
जब विग्रहराज चौहान ने दिल्ली को जीतकर अपने चौहान साम्राज्य के अधीन किया, उस समय भी तोमर वंश के शासक दिल्ली पर अपना अधिकार जमाए रखा। मोहम्मद गौरी के 17वे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हारने पर तंवरो ने दिल्ली छोड़कर राजस्थान चले गए। तोमर वंश चंद्रवंशी थे और परीक्षित के माध्यम से पांडव अर्जुन के वंशज थे। इसी वंश के अनंगपाल तोमर ने 736 ई. में दिल्ली की स्थापना की थी। आज भी तोमर, राजपूतों क्षत्रियों में चंद्रवंश की एक शाखा है।
निष्कर्ष
आज इस लेख में होंगे आप को समझाने का प्रयास किया कि पांडव और कौरव किस जाति के थे। हमने आपको बताया कि पांडव कौन थे कहां से आए थे साथ ही कौरव के वंशज कौन थे। अगर हमारे द्वारा बताई गई जानकारियों को पढ़ने के बाद आप Pandav Aur Kaurav Ki Jati Kya Thi अच्छे से समझ पाए है तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा करे साथ ही आपने विचार और सुझाव कमेंट में बताना ना भूले।
आज भी कौरव मध्य प्रदेश उत्तरप्रदेश छत्तीसगढ़ बिहार रहते हैं