विंध्याचल की विद्याशिनी माता का मंदिर पूरे भारत में प्रचलित है। विंध्यासिनी माता को तुरंत आशीर्वाद देने वाली माता के नाम से जाना जाता है। नंद और यशोदा की बेटी थी, इन्हीं के स्थान पर श्री कृष्ण को वासुदेव ने मथुरा में रखा था। कंस के हाथ से माता का शरीर विंध्याचल में गिरा जो वाराणसी से 70 किलोमीटर और प्रयागराज से 85 किलोमीटर दूर है। आज Vindhyachal Chalisa Pdf की जानकारी नीचे दी गई है जिसे पढ़कर आप विंध्याचल माता विद्यासाहिनी की आराधना कर सकते हैं।
विंध्याचल की माता की आरती के दौरान आपको यह चालीसा पढ़ना चाहिए। इससे माता काफी प्रसन्न होती है और आपकी सारी मनोकामना तुरंत पूर्ण होती है। अगर आप Vindhyachal Chalisa Pdf Download करना चाहते है या उसे पढ़ना चाहते है तो पूरी जानकारी नीचे दी गई है।
Vindhyachal Chalisa Pdf
Book Name | Vindhyachal Chalisa Pdf |
Author | Not Known |
Publish Date | Not Known |
Language | HIndi/ Sanskrit |
Publication | Not Known |
Country | India |
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Vindhyachal Chalisa Pdf
विंध्यासिनी माता को प्रसन्न करने के लिए आपको विद्यांचल चालीसा पढ़ना चाहिए। माता को तुरंत मनोकामना पूर्ण करने वाली माता कहा जाता है क्योंकि अगर आप विंध्याचल चालीसा से माता की पूजा करते हैं तो माता आपसे बहुत प्रसन्न होती है और आपकी सारी मनोकामना तुरंत पूरी करती है।
इसके लिए आपको विद्यांचल माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने की पूरी प्रक्रिया नीचे बताई गई है। इसके अलावा चालीसा आपको कब पढ़नी चाहिए कैसे पढ़नी चाहिए इसके बारे में भी बताया गया है।
Vindhyachal Chalisa Lyrics
दोहा:
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।
सन्तजनों के काज मेंकरती नहीं विलम्ब॥
चौपाई:
जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदि शक्ति जग विदित भवानी॥
सिंहवाहिनी जय जग माता।
जय जय त्रिभुवन सुखदाता॥
कष्ट निवारिणी जय जग देवी।
जय जय असुरासुर सेवी॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी।
शेष सहस्र मुख वर्णत हारी॥
दीनन के दुख हरत भवानी।
नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी॥
सब कर मनसा पुरवत माता।
महिमा अमित जगत विख्याता॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावै।
सो तुरतहिं वांछित फल पावै॥
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी।
तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी॥
रमा राधिका श्यामा काली।
तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला।
बेगि मोहि पर होहु दयाला॥
तू ही हिंगलाज महारानी।
तू ही शीतला अरु विज्ञानी॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता।
तू ही लक्ष्मी जग सुख दाता॥
तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी।
हेमावती अम्बे निर्वाणी॥
अष्टभुजी वाराहिनी देवी।
करत विष्णु शिव जाकर सेवी॥
चौसट्ठी देवी कल्यानी।
गौरी मंगला सब गुण खानी॥
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी।
भद्रकाली सुन विनय हमारी॥
वज्र धारिणी शोक नाशिनी।
आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी॥
जया और विजया वैताली।
मातु संकटी अरु विकराली॥
नाम अनन्त तुम्हार भवानी।
बरनै किमि मानुष अज्ञानी॥
जापर कृपा मातु तव होई।
तो वह करै चहै मन जोई॥
कृपा करहुं मो पर महारानी।
सिद्ध करहु अम्बे मम बानी॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना।
ताकर सदा होय कल्याना॥
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै।
जो देवी का जाप करावै॥
जो नर कहं ऋण होय अपारा।
सो नर पाठ करै शतबारा।
निश्चय ऋण मोचन होइ जाई।
जो नर पाठ करै मन लाई।
अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै।
या जग में सो अति सुख पावै।
जाको व्याधि सतावे भाई।
जाप करत सब दूर पराई।
जो नर अति बन्दी महँ होई।
बार हजार पाठ कर सोई।
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई।
सत्य वचन मम मानहुं भाई।
जा पर जो कछु संकट होई।
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।
जो नर पुत्र होय नहिं भाई।
सो नर या विधि करे उपाई।
पांच वर्ष सो पाठ करावै।
नौरातन में विप्र जिमावै।
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी।
पुत्र देहिं ता कहं गुण खानी।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै।
विधि समेत पूजन करवावै।
नित्य प्रति पाठ करै मन लाई।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा।
रंक पढ़त होवे अवनीसा।
यह जनि अचरज मानहुं भाई।
कृपा दृष्टि तापर होइ जाई।।
जय जय जय जग मातु भवानी,
कृपा करहुं मोहिं पर जन जानी।
॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा ॥
विंध्याचल चालीसा कब पढ़नी चाहिए?
विंध्याचल चालीसा विंध्याचल माता को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है। आप इसे अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी पढ़ सकते है। आमतौर पर इसे सुबह-सुबह मां दुर्गा की आरती के दौरान भी पढ़ा जाता है।
रोज सुबह पूजा के दौरान नहा धोकर विंध्याचल चालीसा पढ़ने से आपकी सारी मनोकामना जल्दी से जल्दी पूरी होती है। आपको हर तरह के मनोकामना पूर्ति के लिए Vindhyachal Chalisa पढ़ना चाहिए।
निष्कर्ष
आज इस लेख में हमने आपको Vindhyachal Chalisa Pdf के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है इसके अलावा यह भी बताया है कि कैसे आप इस चालीसा को अपनी सुविधा के अनुसार पढ़ सकते हैं और अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं अतः इसे अपने मित्रों के साथ भी साझा करें।