Mahabharat Ka Yudh Kitne Din Chala Tha – आखिर महाभारत की कहानी के बारे में कौन नहीं जानता, यह विश्व की कुछ सबसे खूबसूरत और सबसे बेहतरीन रचना में से एक है। महाभारत ना केवल एक धार्मिक ग्रंथ बल्कि जीवन जीने के तरीके के बारे में समझ आती है। महाभारत के अलग-अलग बात रख हमें जीवन में अलग-अलग सीख देने का प्रयास करते है। मगर क्या आपको पता है कि विश्व प्रचलित महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था। महाभारत की कहानी हर कोई जानता है मगर उसके युद्ध से जुड़े बहुत सारे किस्से हैं जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। आज के इस लेख में महाभारत और महाभारत के युद्ध से जुड़े कुछ रोचक बातों को आपके समक्ष रखा गया है।
इस लेख में हमने महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था, महाभारत के युद्ध में किस दिन कौन सी घटना घटी और किस तरह महाभारत के युद्ध का अंत हुआ है इसके बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी है। इस लेख को पढ़ने के बाद आप महाभारत की कहानी को और रोचक तरीके से समझ पाएंगे साथ ही खुद को इसे साझा करने से रोक नहीं पाएंगे।
महाभारत क्या है?
महाभारत एक महाग्रंथ है इसमें एक ऐसे युद्ध का वर्णन है जो अपनों के बीच लड़ा गया था। महाभारत का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में लड़ा गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था। प्राचीन भारत के इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध जो ना कभी पहले लड़ा गया और ना भविष्य में लड़ा जाएगा।
इस युद्ध में लाखों छत्रिय योद्धा मारे गए थे। सदियों पूर्व इस युद्ध में विज्ञान और तकनीक का भरपूर इस्तेमाल हुआ। चक्रव्यूह एक ऐसा युद्ध तकनीक था जिसे ना भूतकाल में किसी ने देखा और ना भविष्य में कोई इसे देख पाएगा। इसके अलावा अनेकों तरीके के विज्ञान और हथियार का इस्तेमाल इस युद्ध में किया गया था।
महाभारत का यह ग्रंथ आज से हजारों साल पहले लिखा गया था इस ग्रंथ में लगभग 18,00,000 शब्द है। महाभारत में निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। जब इंटरनेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी उस समय संजय द्वारा युद्ध का आंखों देखा हाल धृतराष्ट्र को महल में बैठे ही बोलकर सुनाया गया था। महाभारत में रामायण से अधिक विकसित जीवन पद्धति देखने को मिलता है। यह युद्ध कितना विनाशकारी होगा इसका अंदाजा सिर्फ श्रीकृष्ण को था इसलिए श्रीकृष्ण ने युद्ध रोकने का अंतिम प्रयास भी किया लेकिन उनका प्रयास विफल रहा और महायुद्ध का शंखनाद हो गया। महाभारत के इस युद्ध को धर्म युद्ध भी कहा जाता है क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा गया था।
महाभारत का युद्ध कब हुआ था?
महाभारत का युद्ध आज से लगभग 3000 ईसा पूर्व महर्षि शुक्ल पक्ष की 14वीं तिथि को प्रारंभ हुआ था जो 18 दिन तक चला था।
महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था? के बारे में जानने से पहले महाभारत का युद्ध कितने साल पहले हुआ था? यह जानना जरूरी है। आपको बता दें कि, महाभारत का युद्ध वैदिक युग में हुआ था जो आज से लगभग 950 ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। लेकिन विद्वानों में महाभारत युद्ध के समय को लेकर मतभेद है। पश्चिमी विद्वान इसे 1500 ईसा पूर्व मानते हैं तो पुराणों के अनुसार यह युद्ध 1900 ईसा पूर्व माना गया है। वहीं खगोलविद आर्यभट्ट के अनुसार कुरुक्षेत्र का युद्ध 3102 ईसा पूर्व माना गया है। कुछ यूरोपीय विद्वानों के अनुसार यह युद्ध 1200 ईसा पूर्व में माना गया है तो कुछ भारतीय विद्वानों ने इसे लगभग 3000 ईसा पूर्व माना है। सारे तथ्यों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि महाभारत युद्ध का समय 4600-1200 ईसा पूर्व का होगा।
महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था?
महाभारत का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच राज्य का सिंहासन प्राप्त करने के लिए हुआ था। जब पांडवों ने शर्त अनुसार वनवास और अज्ञातवास पूरा कर राज्य में हिस्सा मांगा तो दुर्योधन ने सुई की नोक भर भी जमीन देने से मना कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप महाभारत का युद्ध हुआ।
यह युद्ध तब निश्चित हो गया जब श्रीकृष्ण का युद्ध टालने हेतु शांति वार्ता विफल रहा। महाभारत युद्ध को धर्म युद्ध भी माना गया है क्योंकि यह युद्ध धर्म स्थापना और न्याय के लिए हुआ था। जहां धर्म का साथ देने वाले स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ थे तो वही भीष्म पितामह जैसे महान व्यक्ति अधर्मी कौरवों के साथ थे। धर्म स्थापना के लिए भगवान स्वयं सारथी बनकर भक्तों का परित्राण और दुष्टों के दलन का कार्य किया। महाभारत युद्ध होने का मुख्य कारण कौरवों का अति महत्वाकांक्षी होना और धृतराष्ट्र का पुत्र मोह था।
महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था? (Mahabharat Ka Yudh Kitne Din Chala Tha)
महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म को लेकर कौरव और पांडवों के बीच लड़ा गया था। महाभारत का युद्ध मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष के 14वीं तिथि को आरंभ हुआ और 18 दिनों तक चला था।
भीष्म पितामह ने प्रधान सेनापति के रूप में 10 दिनों तक कौरव सेना का नेतृत्व किया। इसके बाद द्रोणाचार्य 5 दिन प्रधान सेनापति रहे, जिन्होंने द्रुपद, विराट आदि कई महारथियों का वध किया। द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद कर्ण ने 2 दिन प्रधान सेनापति के रूप में कौरव सेना का नेतृत्व किया, जिसमे उसने भीम पुत्र घटोत्कच का वध किया था।
इसके बाद अश्वत्थामा तब प्रधान सेनापति बना जब पूरी कौरव सेना नष्ट हो चुकी थी। वही पांडव सेना का नेतृत्व पूरे 18 दिन तक घृष्टधूम्न ने हीं किया। महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ के सारथी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे जबकि श्रीकृष्ण के नारायणी सेना कौरवों के साथ थी। श्रीकृष्ण ने युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से कहीं भाग नहीं लिया लेकिन वही पांडवों के प्राण और पथ प्रदर्शक थे। महाभारत युद्ध के 18 दिनों में तरह-तरह की रणनीतिया और व्यूह रचे गए थे। युद्ध के प्रथम दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
Mahabharat Ka Yudh [Full Details]
महाभारत युद्ध का पहला दिन –
पहले दिन पांडवों को काफी हानि होती है। जब युद्ध शुरू होता है तब पांडव पुत्र में कोई भी उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता है। इस दिन राजा विराट के पुत्र उत्तर और श्वेत की मृत्यु शल्य और भीष्म के हाथों होती है। महाभारत का पहला दिन कौरवों के लिए उत्साह भरा था और पांडवों के लिए निराशाजनक था।
महाभारत युद्ध का दूसरा दिन –
महाभारत का दूसरा दिन साधारण बीतता है। यह दिन ना तो पांडवों के लिए उत्साह भरा होता है और न ही कौरवों के लिए। इस दिन पांडव के सेनापति धृष्टद्युम्न गुरु द्रोणाचार्य से हार जाते है और रण से भागते है। इस दिन अर्जुन और भीष्म आमने सामने आते है और दिन समाप्त हो जाता है।
महाभारत का तीसरा दिन –
इस दिन भीम अपने बेटे घटोत्कच को बुलाता है और दुर्योधन की सेना के साथ लड़ाई करता है। इसके अलावा अर्जुन और भीष्म युद्ध करते है मगर भीष्म का पलड़ा भारी रहता है। श्री कृष्ण बार-बार अर्जुन को भीष्म वध करने के लिए एक साथ है मगर अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता है।
महाभारत का चौथा दिन –
दुर्योधन कौरवों की सेना में गज सेना को शामिल करता है और हाथियों के बड़े झुंड के साथ भीम की सेना पर आक्रमण करता है। मगर घटोत्कच कौरवों की सेना में आकर मचा देता है और दुर्योधन की सेना को हरा देता है। इस दिन अर्जुन और भीष्म का भयंकर युद्ध होता है मगर दिन के अंत तक भीष्म का ही पड़ा भारी रहता है, जिसमें अर्जुन को भारी नुकसान होता है।
महाभारत का पांचवा दिन –
इस दिन द्रोणाचार्य और भीष्म ने अर्जुन और सात्यकि के साथ जमकर क्यों किया और सात्यकि को रणछोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया। इस दिन के अंत में भी भीष्म का पलड़ा भारी रहा और पांडवों की सेना को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा।
महाभारत का छठा दिन –
दुर्योधन भीष्म और द्रोणाचार्य पर गुस्सा होता रहा है कि वे लोग युद्ध को खत्म नहीं कर रहे है। मगर भीष्म और द्रोणाचार्य युद्ध करते रहे और दुर्योधन को विजय के लिए आश्वासित करते रहे। इस दिन के अंत में पांचाल नरेश को अपनी सेना का बहुत बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ा।
महाभारत का सातवां दिन –
इस दिन की शुरुआत में पांडव के सेनापति धृष्टद्युम्न दुर्योधन को हरा देते है और वह रणछोड़ कर भाग जाता है। इसके अलावा अर्जुन का पुत्र कौरव सेना के विंद और अनुविंद को हरा देता है। मगर दिन के अंत होने तक भीष्म पांडव सेना पर भारी पड़ जाते है।
महाभारत का आठवां दिन –
इस दिन की शुरुआत होते ही भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध करता है। वही राक्षस अम्बलुष, अर्जुन पुत्र इरावन का वध कर देता है। दूसरी तरफ घटोत्कच दुर्योधन से युद्ध करता है और उसे प्रताड़ित कर के रण से भगा देता है। जब युधिष्ठिर और अन्य पांडव कौरव सेना पर भारी पड़ने लगते है तो भीष्मा पांडव सेना को दिन के अंत तक पीछे धकेल देते है।
महाभारत के नौवें दिन के शुरू होने से पहले दुर्योधन भीष्म पर गुस्सा होता है और कर्ण को युद्ध में लाने की बात कहता है। मगर भीष्म इस बात के लिए आश्वासित करते है कि या तो वह कृष्ण को हथियार उठाने पर मजबूर करेंगे या किसी एक पांडव पुत्र का वध करेंगे। इस दिन की शुरुआत से ही भीष्मा अपने विकराल रूप से युद्ध करते है और इसके बाद भगवान कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते है और भीष्म को मारने के लिए आगे बढ़ते है। तब अर्जुन रण में आकर कृष्ण के पैर पकड़ लेते है और भीष्म वध के लिए कृष्ण को आश्वासित करते हैं। इस दिन भीष्म के भीषण प्रकोप से पांडवों की आधी से अधिक सेना खत्म हो चुकी होती है।
महाभारत का दसवां दिन –
महाभारत का दसवां दिन शुरू होने से पहले पांडव के जेस्ट युधिष्ठिर, पितामह भीष्म से बात करने जाते है और आशीर्वाद के रूप में उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते है। जिस पर भीष्म अपनी एक प्रतिज्ञा बताते है कि अगर उनके आगे कोई एक स्त्री आ जाए तो वह अपना हथियार नहीं उठाएंगे और उस वक्त उन पर वार करके उन्हें गिराया जा सकता है।
इस तरकीब का इस्तेमाल करते हुए अर्जुन दसवें दिन अपने रथ पर शिखंडी को लेकर लड़ाई करता है जिसे देखकर भीष्म हथियार नहीं उठाते है और उस वक्त तीर मार कर भीष्म को बाणों की शय्या पर लेटा देते है।
महाभारत का 11 वां दिन –
भीष्म के बाण सैया पर लेटने के बाद कर्ण युद्ध में आता है, मगर गुरु द्रोण को कौरव सेना का सेनापति नियुक्त किया जाता है और दुर्योधन द्रोण से अनुरोध करता है कि वह युधिष्ठिर को बंदी बना ले तो युद्ध यहीं खत्म हो जाएगा। कर्ण बाकी सेना को रोकने का कार्य करता है और पांडव सेना को भीषण नुकसान होता है। हालांकि अर्जुन द्रोण के चाल को समझ जाते है और उन्हें युधिष्ठिर तक पहुंचने नहीं देते है।
महाभारत का 12वा दिन –
इस दिन युधिष्ठिर को पकड़ने के लिए शकुनी अर्जुन को दूर लेकर जाता है और कर्ण युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी पांडव सेना को बहुत पीछे धकेल देता है। मगर युधिष्ठिर बंदी बने उससे पहले अर्जुन आकर युधिष्ठिर को बचा लेता है।
महाभारत का 13वा दिन –
महाभारत का 13वां दिन काफी रोचक रहता है। इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से लड़ने के लिए भेजता है। भगदत्त को रोकने के लिए बीच में भीम आता है मगर वह भीम को तुरंत हरा देता है और अर्जुन को युधिष्ठिर से बहुत दूर लेकर जाता है। दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है, और भगदत्त के वैष्णव अस्त्र का तोड़ अर्जुन के पास नहीं होता है जिससे अर्जुन को बचाने के लिए श्रीकृष्ण उस शस्त्र को अपने ऊपर ले लेते है। इसके बाद अर्जुन भगदत्त की पट्टी फोड़ देता है जिसके बाद उसे कुछ दिखाई नहीं देता और उसका अर्जुन वही अंत कर देता है।
हालांकि जब तक अर्जुन युद्ध को अंजाम देता है तब तक युधिष्ठिर को पकड़ने के लिए गुरु द्रोण चक्रव्यूह की रचना करते है। अभिमन्यु बताता है कि उसे चक्रव्यूह के अंदर जाना आता है तो वह पांडवों को उसके अंदर लेकर जा सकता है। इस बात पर युधिष्ठिर भीम और अन्य पांडवों को अभिमन्यु की रक्षा के लिए उसके साथ भेजता है। मगर जयद्रथ अभिमन्यु को छोड़कर बाकी सारे पांडवों को चक्रव्यू के दरवाजे पर रोक लेता है और अभिमन्यु चक्रव्यूह के अंदर फस जाता है। जब अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाता तो वह अकेले ही पूरी कौरव सेना से लड़ता है। द्रोण, शकुनि, दुर्योधन, कर्ण, जैसे 11 पराक्रमी योद्धाओं से वह अकेला युद्ध करता है। इन योद्धाओं को अभिमन्यु को मारने के लिए भी उसके पीठ पर वार करके उसे नीशस्त्र करना पड़ता है।
जब अभिमन्यु की मृत्यु हो जाती है तब अर्जुना अगले दिन जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा लेता है, और ऐसा ना कर पाने पर वह अग्नि समाधि की प्रतिज्ञा लेता है।
महाभारत का 14वां दिन –
अर्जुन की अग्नि समाधि वाली प्रतिज्ञा को ध्यान में रखते हुए कौरव सेना जयद्रथ को पूरी सेना के पिछले भाग में छुपा देते है। मगर भगवान श्री कृष्ण के सूर्यास्त के धोखे को देखकर जयद्रथ बाहर आता है और उसी वक्त अर्जुन उसका वध कर देता है। इसी दिन गुरु द्रोण राजा द्रुपद और राजा विराट का वध करते है।
महाभारत का 15 वां दिन –
इस दिन गुरु द्रोण भीषण तरीके से युद्ध करते है मगर गुरु द्रोण को रोकने के लिए अश्वत्थामा की मृत्यु की खबर फैला दी जाती है। जिसे सुनकर द्रोण समाधि ले लेते है और उसी वक्त पांडव के सेनापति धृष्टद्युम्न के द्वारा गुरु द्रोण का सर काट दिया जाता है।
महाभारत का 16 वा दिन –
इस दिन कर्ण कौरव सेना का सेनापति बनता है और भीषण युद्ध करता है। कर्ण के भयानक युद्ध के कारण पांडव सेना लगभग खत्म हो जाती है और उनका एक बहुत ही छोटा सा भाग बचता है। इस दिन कर्ण – सहदेव, नकूल, और युधिष्ठिर को हरा देता है मगर कुंती को दिए वचन के कारण वह इनमें से किसी को भी नहीं मारता है। इस दिन कर्ण को रोकने के लिए घटोत्कच उस से युद्ध करता है और कर्ण ने जिस हथियार को अपने कवच कुंडल के दान के बदले पाया था उसका इस्तेमाल घटोत्कच को मारने के लिए करता है जिससे अर्जुन बच जाता है। दिन के अंत होने तक भीम दुशासन की छाती फाड़ देता है और उसका लहू पीकर अपनी प्रतिज्ञा खत्म करता है।
महाभारत का 17 वा दिन –
इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को बार-बार हरा देता है मगर कुंती को दिए वचन के कारण वह इन्हे नहीं मारता है। इसी बीच कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में धंस जाता है और उस वक्त उस रथ चक्र को बाहर निकालने के लिए कर्म रथ से उतरता है और कृष्ण तभी अर्जुन को कर्ण के आगे लेकर आते है और बताते है कि इसके बिना और कोई अवसर नहीं मिलेगा अभी हि कर्ण का संघार करना होगा। कर्ण अपना रथ चक्र निकालता रहता है और बिना हथियार के अर्जुन को देखता रहता है मगर अर्जुन कर्ण को मार देता है।
महाभारत का 18 वां दिन –
इस दिन भीम करो कि बाकी सेना खत्म कर देता है और सहदेव शकुनि को मार देता है। दुर्योधन अपनी हार समझ लेता है और सरोवर में जाकर छिप जाता है। अगले दिन वह अपने शरीर को पत्थर का बनाने के लिए अपनी मां के आगे बिना कपड़ों के जाता है। मगर रास्ते में भगवान कृष्ण उस पर हंसते है और उसे कुछ कपड़ा पहन लेने को कहते है। जिस वजह से दुर्योधन के जांघ से नीचे का हिस्सा पत्थर का नहीं बन पाता है। इसके बाद दुर्योधन भीम का गदा युद्ध के लिए ललकारता है मगर कृष्ण के इशारे पर भीम अपनी गदा से दुर्योधन के जांघ पर वार करता है और उसका जांघ तोड़ कर उसे देता है।
महाभारत युद्ध के आखिरी दिन किसकी किसकी मृत्यु हुई थी?
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। 18वें दिन कौरवों में तीन योद्धा शेष बचे थे अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। सेनापति अश्वत्थामा और कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया। अश्वत्थामा ने सभी पंचालो, द्रोपदी के पांच पुत्रों, दृष्टधुम्न तथा शिखंडी का वध कर दिया।
पांडवों के ललकारने पर जब दुर्योधन भीम से गदा युद्ध के लिए तैयार होता है। तब भीम दुर्योधन की जंघा पर प्रहार कर दुर्योधन को मार देता है और पांडवों की विजय होती है। इसी के साथ आखरी दिन दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है।
यही वह समय होता है जब अश्वत्थामा को अपने पिता की मृत्यु का सच पता चलता है और वह ब्रह्मास्त्र से पांडवों पर वार करता है। उसी वक्त अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र चलते है मगर दोनो ब्रह्मास्त्र के टकराने से पृथ्वी का सर्वनाश हो सकता था इस वजह से अर्जुन ने अपना मगर अश्वत्थामा को अपना ब्रह्मास्त्र वापस लेने नहीं आता था।
परिणाम स्वरूप अर्जुन के आने वाले पुत्र की तरफ इस ब्रह्मास्त्र को भेज दिया जाता है और अर्जुन के होने वाले पुत्र की मृत्यु हो जाती है। इस पर भगवान श्री कृष्ण बहुत क्रोधित होते है और अश्वत्थामा को अमर रहने का श्राप देते है। भगवान श्री कृष्ण अश्वत्थामा को एक भयानक सांप देते है, कि उसका घाव धरती जब तक रहेगी तब तक नहीं भरेगा और वह चाहकर भी मर नहीं पाएगा। दुनिया की कई अलग अलग प्रांत और इतिहास की कहानियों में इस घटना का अलग अलग तरीके से उल्लेख किया गया है जिस वजह से अश्वत्थामा पांच चिरंजीवी अमर व्यक्तियों में से एक माने जाते है।
महाभारत युद्ध के पश्चात कितने योद्धा बचे थे ?
महाभारत युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 योद्धा कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा ही जीवित बचे थे। जबकि पांडवों की तरफ से 15 योद्धा जीवित बचे थे जिनमें युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कृष्ण, युयुत्सु, सात्यकि आदी है। कुल मिलाकर महाभारत युद्ध के पश्चात् 18 योद्धा जीवित बचे थे।
महाभारत युद्ध के कुछ वर्षों के पश्चात कलियुग का आरंभ हुआ। कलयुग से पहले महाभारत का युद्ध जिस युग में हुआ उसे द्वापर युग कहा जाता है। द्वापर युग के आखिरी वीर, प्रतापी और विद्वान राजा परीक्षित थे जिनकी मृत्यु के बाद कलयुग शुरू होता है।
FAQ:
Q. महाभारत को कितना समय हो गया है?
अलग-अलग अध्ययन करता के मुताबिक अलग-अलग तारीख दी जाती है मगर अधिकांश इतिहासकारों के द्वारा यह माना जाता है कि 3200 ईसा पूर्व महाभारत की घटना घटी थी।
Q. महाभारत का युद्ध कब समाप्त हुआ था?
भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत का युद्ध 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ था।
Q. महाभारत का युद्ध किसके बीच हुआ और कितने दिन चला?
महाभारत का युद्ध पांडव भाइयों और कौरव भाइयों के बीच हुआ था जो 18 दिनों तक चला था।
Q. महाभारत का युद्ध इतना प्रचलित क्यों है?
महाभारत के युद्ध को भारत का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है और यह युद्ध न्याय और धर्म के लिए लड़ा गया था जिस वजह से इसे विश्व भर में मान्यता दी गई है।
Q. भीष्म पितामह कितने दिनों तक बाण शैया पर लेटे थे?
भीष्म पितामह महाभारत युद्ध के दसवें दिन तीर बिस्तर पर लेट गए थे। उन्होंने 51 रातों तक खुद को जीवित रखा था उसके बाद महाभारत के युद्ध के खत्म होने पर सीत सक्रांति के दिन अपना शरीर छोड़ा था।
निष्कर्ष
आज इस लेख में हमने आपको Mahabharat Ka Yudh Kitne Din Chala Tha (महाभारत का युद्ध कितने दिन चला था) के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी है। हमने इस लेख के माध्यम से आपको यह समझाने का प्रयास किया है कि भारत का इतिहास कितना रोचक है और महाभारत जैसे महान युद्ध के हर दिन कौन सी घटना घटी थी और किस प्रकार महाभारत विश्व का इतना प्रचलित युद्ध बन गया।
अगर आप हमारे द्वारा दी गई जानकारियों को पढ़ने के बाद महाभारत युद्ध को एक नए नजरिए से देख पाए है साथ ही इस युद्ध को अच्छे से समझ पाए है तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा करें। इसके अलावा आपके अनुसार इस युद्ध के सबसे ताकतवर व्यक्ति के बारे में कुछ टिप्पणी करना ना भूलें।
Must Read