FIR Kya Hota Hai – FIR का फुल फॉर्म होता है First Information Report (प्रथम सूचना रिपोर्ट)। जब कोई संज्ञेय घटना घटित होती है तो उस घटना के संबंध में पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रथम दृष्टया जो सूचना पुलिस को दी जाती है, वही FIR है। तत्पश्चात पुलिस सीआरपीसी की धारा 154 के तहत मामला दर्ज कर लेती है। किसी भी घटना को घटित होने पर एफआईआर दर्ज करना पुलिस की पहली कार्रवाई होती है।
दोस्तों, अक्सर हमारे मन में विचार आता है कि FIR क्या होता है? FIR कब और कैसे दर्ज की जाती है? क्या होता है एफ आई आर दर्ज होने के बाद? FIR दर्ज होने के बाद पुलिस क्या करती है? FIR दर्ज होने पर पुलिस की क्या कार्यवाही है?
तो, आइए हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से एफ आई आर दर्ज होने से निर्णय होने तक की संपूर्ण प्रोसेस बता रहे हैं।
FIR Kya Hota Hai | FIR क्या है?
एफ आई आर के आधार पर पुलिस आरोपी पर कई किस्म की धाराएं लगाती है और मामला संगीन हो तो गिरफ्तारी भी करती है। अगर आरोपी पर जमानतीय धारा लगा है तो आरोपी के घरवाले या रिश्तेदार जाकर जमानत ले सकते हैं।
FIR दर्ज होने के बाद संबंधित घटना का अन्वेषण (इन्वेस्टिगेशन) या जांच (इंक्वारी) करना होता है। इसके लिए एक अन्वेषण अधिकारी (Investigation officer) नियुक्त किया जाता है। जिसे जांच या विवेचना अधिकारी भी कहा जाता है,जो सब इंस्पेक्टर के रैंक से शुरू होता है। एक बार FIR दर्ज हो जाने के बाद पुलिस मामले की जांच शुरू करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होती है।
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FIR दर्ज न होने पर क्या करें
कई बार ऐसा देखा गया है कि संज्ञेय अपराध घटित होने के बावजूद भी पुलिस, पीड़ित व्यक्ति का शिकायत दर्ज नहीं करती है, तब पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर पुलिस अधीक्षक (S.P.) के पास जाता है। यदि पुलिस अधीक्षक के पास जाने से भी शिकायत दर्ज नहीं होती है तो वह व्यक्ति सीधे कोर्ट की शरण में जाता है और मामला दर्ज करवाता है। तत्पश्चात कोर्ट के आदेश से उक्त मामले को तहकीकात(Investigation) करने के लिए उसी थाने को भेज दिया जाता है।
FIR के अनुसार पुलिस कैसे काम करती है
एफ आई आर में जो बातें पीड़ित व्यक्ति द्वारा बताई जाती है वह एक तरफा बात होती है। अतः जांच शुरू करने के लिए पुलिस सर्वप्रथम घटनास्थल का दौरा करती है और जांच अधिकारी द्वारा घटनास्थल का नक्शा-नजरी बनाया जाता है। इसके साथ ही पुलिस पीड़ित व्यक्ति का बयान दर्ज करती है और साथ ही वैसे व्यक्ति का जो घटना के समय वहां मौजूद था या घटना से संबंधित है का भी ब्यान दर्ज करती है। इसके अलावा पुलिस घटना से संबंधित सारे सबूत को इकट्ठा करती है। एफ आई आर में कही गई बातों का जांच पड़ताल कर पुष्टि की जाती है की कितनी बातें सही है और कितनी बातें गलत।
FIR झूठा होने पर क्या होता है
जब पुलिस को जांच पड़ताल से यह ज्ञात होता है कि आरोपी को अपराधी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है और आरोपी पर लगाए गए आरोप झूठा और बेबुनियाद है तो पुलिस उस मामले को कोर्ट में एक क्लोजर रिपोर्ट जिसे FRT भी कहा जाता है, लगाकर बंद कर सकती है और कोर्ट के आदेश से केस यहीं पर समाप्त हो जाता है।
CRPC 41(A) क्या है
FIR दर्ज होने के बाद अभियुक्त को गिरफ्तार करना आवश्यक हो जाता है। लेकिन कुछ मामलों में साक्ष्यों या तथ्यों से यह ज्ञात होता है कि मामला कम संगीन या कम गंभीर है और गिरफ्तारी की कोई खास वजह नहीं है, तब ऐसे व्यक्ति को पुलिस सीआरपीसी की धारा 41(A) के तहत नोटिस जारी कर बुला सकती है और मामले की जांच पड़ताल कर सकती है।
FIR के तेहेत कार्यवाई
FIR दर्ज होने के बाद पुलिस, आरोपी को गिरफ्तार तो करती ही है लेकिन गिरफ्तारी के अलावा भी पुलिस को बहुत कुछ करना पड़ता है तब जाकर केस का अनुसंधान पूरा होता है। जैसे-
- पुलिस घटनास्थल का मैप बनाती है जिसे नक्शा-नजरी भी कहा जाता हैं। जिसमें आस-पास की सभी वस्तुओं को दर्शाया जाता है।
- शिकायतकर्ता (complainant) का ब्यान दर्ज करना।
- मामले से संबंधित या चश्मदीद गवाहों से पूछताछ करना और उनका ब्यान दर्ज करना।
- यदि पीड़ित व्यक्ति को कोई चोट है तो उसका मेडिकल कराना।
- घटना से संबंधित यदि कोई हथियार या समान बरामदगी हुई है तो उसको जप्ति पत्र बनाकर जप्त करना।
- यदि जरूरत हो तो फोरेंसिक टेस्ट करवाना।
- मामले से संबंधित सभी साक्ष्यों और दस्तावेजों को इकट्ठा करना और चार्जशीट के समय संलग्न कर कोर्ट भेजना।
आरोपी के गिरफ्तार होने पर क्या होता है
आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद, पुलिस को मुख्य तौर पर निम्नलिखित कार्यवाही करनी पड़ती है।
- गिरफ्तारी ज्ञापन तैयार करना। जिसमें गिरफ्तारी का दिनांक, समय व स्थान का उल्लेख रहता है। इस ज्ञापन पत्र में दो गवाहों के हस्ताक्षर भी होते हैं।
- व्यक्तिगत जामा तलाशी लेना और गवाहों के उपस्थिति में उसका प्रपत्र तैयार करना।
- अभियुक्त के निवेदन पर उसका मेडिकल जांच करवाना।
- गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार, दोस्त या रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना देना।
- गिरफ्तार व्यक्ति को उसके गिरफ्तारी के 24 घंटो के अंदर नजदीकी न्यायालय में पेश करना।
जमानत कैसे मिलती है
पुलिस जब भी कोई मामले की जांच पड़ताल करती है तो उससे संबंधित एक केस डायरी तैयार करती है जिसमें केस से संबंधित सारा ब्यौरा दर्ज किया जाता है। केस डायरी को हम आम बोलचाल की भाषा में CD कहते हैं।
जब पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर न्यायालय में पेश करती है तो न्यायालय में मुल्जिम का वकील जमानत की अर्जी लगाता है। अगर जमानत की अर्जी मंजूर हो गई तो मुल्जिम वहीं से जमानत पर रिहा होकर अपने घर चला जाता है। यदि जमानत की अर्जी खारिज हो गई तो मुलजिम को वहीं से जेल भेज दिया जाता है।
चार्जशीट क्या होता है
इसके बाद पुलिस मामले की पूरी गहराई से जांच पड़ताल करने के बाद केस का अनुसंधान पूर्ण करती है और एक चार्ज शीट तैयार करती है जिसे फाइनल रिपोर्ट या आरोप पत्र भी कहा जाता है। चार्जशीट में समस्त कागजातों और दस्तावेजों को संलग्न कर कोर्ट में पेश किया जाता है।
चार्जशीट पेश होने के बाद, कोर्ट में मामले का विचारण होता है और पूरी प्रक्रिया के बाद कोर्ट अपना निर्णय सुनाती है। यदि अभियुक्त कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो वह आगे के लिए अपील कर सकता है।