Shiv Chalisa Pdf – शिव चालीसा भगवान शिव को समर्पित एक ताकतवर और महत्वपूर्ण स्तुति है। भगवान शिव की पूजा करने के दौरान शिव चालीसा पढ़ने से आपके सभी प्रकार की परेशानियां दूर होती है। भगवान शिव को त्रिमूर्ति त्रिकालदर्शी के रूप में जाना जाता है। आज इस लेख में हम आपको शिव चालीसा पीडीएफ के बारे में बताने जा रहे है।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप Shiv Chalisa Pdf Download कर सकते है। अगर आपके जीवन में विवाह संबंधित परेशानी चल रही है तो शिव चालीसा का नियमित पाठ आपके लिए लाभदायक हो सकता है। अगर आप भगवान शिव के भक्त हैं और अपने कार्य क्षेत्र में तरक्की प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए भी आपको शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ कब और कैसे करना चाहिए इसकी जानकारी नीचे सूचीबद्ध की गई है।
Shiv Chalisa Pdf – Overview
Book Name | Shiv Chalisa Pdf |
Author | Not Known |
Publish Date | Not Known |
Language | Hindi/ Sanskriti |
Publication | Not Known |
Country | India |
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Shiv Chalisa Pdf
शिव चालीसा हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति में से एक भगवान शिव को समर्पित है। हिंदू धर्म में त्रिमूर्ति का स्थान ब्रह्मा विष्णु महेश को दिया गया है। हिंदू धर्म के मुताबिक ब्रह्मा सृष्टि की रचना करने का काम करते हैं और विष्णु सृष्टि के सभी लोगों का पालन करते है, और अंत में महेश अर्थात भगवान शिव जरूरत पड़ने पर सृष्टि का संघार करके उसे समाप्त करने का कार्य करते हैं।
आप अपने विवाह कार्य और व्यवसाय के क्षेत्र में आने वाली सभी परेशानियों का समाधान शिव चालीसा के पाठ से प्राप्त कर सकते है। शिव चालीसा भगवान शिव के चरित्र और उनके व्यक्तित्व की एक गाथा है जिसे भगवान शिव की पूजा के दौरान पढ़ा जाता है। आप Shiv Chalisa Pdf Download कर सकते है इसके लिए बटन ऊपर दिया गया है।
शिव चालीसा कब पढ़ना चाहिए?
शिव चालीसा को रोजाना भगवान शिव की पूजा के दौरान पढ़ना चाहिए। शिव चालीसा को आप सुबह-सुबह नहा कर भगवान शिव के शिवलिंग पर अभिषेक के दौरान भी पढ़ सकते है।
शिव चर्चा या शिवरात्रि के दिन शिव विवाह के दौरान भी शिव चालीसा का पढ़ना शुभ माना जाता है। अगर आप शिव चर्चा करते हैं तो वहां भी शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं। शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपकी सारी मनोकामना पूरी होती है।
Shiv Chalisa Lyrics PDF in Hindi
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥
निष्कर्ष
आज इस लेख में हमने आपको Shiv Chalisa Pdf के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है जिसे पढ़कर आप आसानी से शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव चालीसा का पाठ कर सकते है। Shiv Aarti PDF का लिंक भी ऊपर दिया गया है जिस पर क्लिक करके आपको चालीसा के बाद भगवान शिव की आरती भी कर सकते हैं।