Mahabharat Kab Hua Tha – महाभारत कब और कहाँ हुआ था?

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Google Mahabharat Kab Hua Tha – हिंदू धर्म के लोगों के लिए महाभारत एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है। महाभारत की पूरी कहानी सही गलत और धर्म अधर्म पर आधारित है। कहने को तो महाभारत विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था मगर इसकी व्याख्या में हम समझते हैं कि परिवार कैसा होता है, राजा कैसा होता है, और युद्ध कैसा होता है।

Mahabharat Kab Hua Tha

महाभारत होने का पूरा कारण राजगद्दी और सत्ता है मगर इसे पढ़कर एक व्यक्ति समझ सकता है कि अच्छे परिवार और अच्छे रिश्ते का क्या महत्व है। इसके अलावा महाभारत का पूर्ण सर हमें बताता है कि राजा को निष्पक्ष होकर फैसला लेना चाहिए अगर आप नेता बनकर नेतृत्व करना चाहते है तो रिश्ते का मोह त्यागना आप का सबसे पहला काम होगा। खैर इन सभी महान बातों को आगे जारी रखने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि क्या सच में महाभारत हुआ था। लोग अक्सर गूगल से पूछते है की गूगल महाभारत कब हुआ था (Mahabharat Kab Hua Tha) अगर आप भी उनमें से एक है तो नीचे दी गई जानकारियों को ध्यानपूर्वक पढ़ें।   

Mahabharat Kab Hua Tha

महाभारत का युद्ध वैदिक युग में हुआ था। महाभारत के युद्ध के समय को लेकर कई भारतीय एवं पश्चिमी विद्वानों में मतभेद है। खास बात यह है कि महाभारत को लेकर विद्वानों में मतभेद तो दिखता है पर इन सभी का अनुमान एक दूसरे से काफी मिलता-जुलता है। यहां पर हमको यह जानना है की महाभारत युद्ध का वास्तविक समय क्या रहा होगा। 

विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री वराहमिहिर के अनुसार महाभारत का युद्ध आज से लगभग 2449 ईसा पूर्व को हुआ था। यदि इसको आज के हिसाब से जोडा जाए तो महाभारत का युद्ध तकरीबन 4471 वर्ष पहले हुआ था।

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के अनुसार यह महायुद्ध 3102 ईसा पूर्व हुआ था अर्थात आज से लगभग 5124 वर्ष पहले यह युद्ध लड़ा गया था।

यूनान के राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी किताब इंडिका में भारत यात्रा का वर्णन करते हुए लिखा है कि यमुना नदी के निकट मथुरा राज्य में शूरसैनी रहते थे और किसी हीराकल्स नामक देवता की पूजा करते थे। जो अत्यंत चमत्कारी पुरुष थे और चंद्रगुप्त से करीब 138 पीढ़ियों पहले के थे। हीराकल्स के कई पुत्र थे जो आपस में युद्ध करके मृत्यु को प्राप्त हो गए। 

इससे यह स्पष्ट होता है कि मेगास्थनीज ने हीराकल्स शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयोग किया है। पर यहां बात हुई है 138 पीढ़ियों की। अगर 138 पीढ़ियों का हिसाब – किताब किया जाए तो 5600-3100 ईसा पूर्व आता है, जो श्री कृष्ण का जन्म का समय माना जा सकता है।

सन 1927 में मोहनजोदड़ो का पुरातात्विक उत्खनन में पत्थर का एक शील मिला था। जिसमें एक छोटे बालक द्वारा दो पेड़ों को खींचता हुआ और उन पेड़ों से दो पुरुषों को निकल कर उस बालक को प्रणाम करते हुए दिखाया गया था। यह दृश्य उस समय का है जब भगवान श्री कृष्ण दो कुबेर पुत्रों नलकुबेर और मणिकिर्व को नारद जी के श्राप से मुक्त करते हैं। 

कई विद्वानों का मत है कि मोहनजोदड़ो के लोग महाभारत की कथाओं से परिचित थे और उनको महाभारत का ज्ञान था। इस हिसाब से महाभारत का युद्ध 3000 ईसा पूर्व माना गया है।

अनेकों भारतीय विद्वान और खगोल शास्त्री ग्रह नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर महाभारत को 3067 ईसा पूर्व का मानते है। अगर सारे मतों को मिलाकर देखा जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि महाभारत का काल 4000 ईसा पूर्व का रहा होगा।

महाभारत किसके वजह से हुआ था?

महाभारत की लड़ाई किसके वजह से हुई थी इस कथन का वर्णन महाभारत के आदि पर्व और भागवत महापुराण के दूसरे स्कंध में मिलता है। प्राचीन कौशल देश के इक्ष्वाकु वंश में महाभिष नामक महा प्रतापी राजा हुए थे। जिन्होंने हजार अश्वमेध यज्ञ, सैकड़ों वाजपेय यज्ञ और राजसूय यज्ञ करके स्वर्ग प्राप्त किया था। राजा महाभिष और देवी गंगा दोनों ने देव लोक की मर्यादा भंग किया था, तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने महाभिष को श्राप दिया था की तुम मृत्युलोक में जन्म लेगा और वहां जब बहुत पुण्य करेगा और वह गंगा तुम्हारा प्रिय होकर भी अप्रिय करेंगी, जब तुम उस पर क्रोध करोगे तब वह चली जाएगी और तुम्हारा उद्धार होगा। देवी गंगा को भी ब्रह्मा जी ने वैसा ही श्राप दिया था।

श्रापित राजा महाभिष को पुरुबंशी राजा प्रतीप का पुत्र बनने का जिज्ञासा उत्पन्न हुई। कुछ समय बाद देवी गंगा की मुलाकात अष्ट देव बसुओ से हुई। वे आठों देव बसु मुनि वशिष्ठ के श्राप से ग्रसित थे और उन्हें भी एक वर्ष के लिए मनुष्य योनि में जन्म लेना था। तब वसुओ ने देवी गंगा से आग्रह किया की आप ही मनुष्य होकर हमारी जननी बनने की कृपा करें और हमें उत्पन्न होते हो अपने जल में फेंक दीजिएगा। इस तरह हम लोग श्राप मुक्त हो जाएंगे। गंगा ने वसुओ की सारी बातें स्वीकार कर ली।

पितामह भीष्म कौन थे?

एक दिन की बात है पुरु वंशी राजा प्रतीप गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे तभी देवी गंगा उनके पास आई और दोनों में बातचीत के उपरांत यह निश्चय हुआ कि गंगा राजा प्रतीप के भावी पुत्र की पत्नी बनेगी। बहुत तपस्या करने के बाद वृद्धावस्था में महाभिष ने राजा प्रतीप के पुत्र के रूप में जन्म लिया। उस समय राजा प्रतीप शांत हो रहे थे अथवा उनका वंश शांत हो रहा था। 

ऐसी अवस्था में संतान उत्पन्न होने के कारण उसका नाम शांतनु रखा गया। जब शांतनु जवान हुए तो पिता ने उनसे कहा कि तुम्हारे पास एक दिव्य स्त्री पुत्र प्राप्ति हेतु तुम्हारे पास आएगी, तुम उसकी कोई जांच-पड़ताल मत करना, वह जो कुछ करें उसे कुछ मत कहना। ऐसा कह कर वे अपने पुत्र शांतनु को राज गद्दी पर बैठाया और स्वयं वन में चले गए।

मेरु पर्वत के पास महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था। उनके आश्रम में बहुत से ऋषिगणों के साथ-साथ कामधेनु की पुत्री नंदिनी भी रहती थी। एक बार जब पृथु आदि बसु मेरु पर्वत से गुजर रहे थे तो उनकी नजर नंदनी पर पड़ी। तब प्द्यों नामक बसु ने नंदनी का हरण कर लिया जिसमें बाकी वसुओ ने साथ दिया। नंदिनी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली महर्षि वशिष्ठ की गौ थी। 

यथापी देव वसुओ के मन में पाप की भावना नहीं थी और उन्होंने नंदनी को वापस भी कर दिया था। फिर भी महर्षि वशिष्ठ ने उस कार्य के लिए श्राप दिया कि उन्हें मनुष्य योनि में एक एक वर्ष के लिए जन्म लेना पड़ेगा। परंतु यह द्यो नामक वसु अपना कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक मृत्युलोक में रहेगा और यह वसु मृत्युलोक में संतान उत्पन्न नहीं करेगा। साथ ही अपने पिता के प्रसन्नता और भलाई के लिए स्त्री का त्याग करेगा। आगे चलकर वही  द्यो नामक वसु पितामह भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते खेलते गंगा तट पर जा पहुंचे। उन्होंने वहां एक परम सुंदरी स्त्री को देखा। राजा के मन में पिताजी द्वारा कही गई बात याद आ गई, तो राजा ने उस स्त्री से बात किया और उसे पत्नी बनाने का आग्रह किया। यह सुनकर देवी गंगा ने कहा- राजा, मुझे आपकी रानी बनना स्वीकार है परंतु शर्त यह है कि मैं अच्छा, बुरा जो कुछ भी करूं, आप मुझे रोकेंगे नहीं, कुछ कहेंगे नहीं। जब तक आप मेरी यह शर्त पूरी करेंगे तब तक मैं आपके पास रहूंगी। जिस दिन आप मुझे रोकेंगे या टोकेंगे, उस दिन मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी। राजा ने उसकी सारी शर्त स्वीकार कर ली।

राजा शांतनु गंगा के साथ आनंदित जीवन जीने लगे। कुछ समय बाद देवी गंगा को पुत्र के रूप में वसु की उत्पत्ति हुई, उत्पन्न होते ही उस पुत्र को उन्होंने गंगा के जल में फेंक दिया। इसी तरह उन्होंने सात पुत्रों को गंगा जल में फेंक दिया। राजा शांतनु को यह बात बहुत अप्रिय लगती थी परंतु वह इस भय से कुछ नहीं बोलते कि कहीं यह मुझे छोड़ कर चली ना जाए। 

जब आठवां पुत्र हुआ, उस समय गंगा हंस रही थी। राजा शांतनु को इससे बड़ा दुख हुआ और उनके मन में यह इच्छा हुई कि वह पुत्र उन्हें मिल जाए। तब उन्होंने कठोर पूर्वक गंगा से कहा, अरे, तू कौन है ? तुम किसकी पुत्री है ? इन बच्चों को क्यों मार रही है ? यह तो महापाप है। यह सुनकर गंगा ने कहा कि लो मैं तुम्हारे इस इस पुत्र को नहीं मारूंगी। 

अब शर्त के अनुसार मेरा यहां रहना नहीं हो सकता है। मैं जलो की कन्या गंगा हूं। देवताओं के कार्यसीधी के लिए मैं तुम्हारे पास आई थी। मेरा यह आठों पुत्र देव वसु है। महर्षि वशिष्ठ के श्राप से इन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा था। इन्हें मनुष्य लोक में तुम्हारे जैसा पिता और मेरी जैसी मां नहीं मिल सकती थी। मैंने उन्हें तुरंत मुक्त कर देने की प्रतिज्ञा की थी। 

इसी कारण से ऐसा किया। वह मुक्त हो गए और मैं अब जा रही हूं। यह आठवां पुत्र द्यों नामक वसु है। इसकी  तुम रक्षा करना। यह प्राचीर काल तक मनुष्य लोक में रहेगा। यह कह कर गंगा जी उस बालक के साथ अंतर्ध्यान हो गई।

गंगा के जाने के बाद राजा शांतनु ब्रह्मचर्य जीवन जीने लगे। कई वर्षों बाद एक दिन राजा शांतनु गंगा नदी के तट पर घूम रहे थे तभी उन्हें एक सुंदर कुमार दिखाई दिया, जिसने अपने वाणो के प्रभाव से गंगा की धारा को रोक दिया था। राजा शांतनु उसे पहचान नहीं सके, तभी वहां देवी गंगा प्रकट हुई। 

जब शांतनु ने उस बालक के बारे में पूछा तब देवी गंगा बोली, यह आपका आठवां पुत्र है। आप इसे स्वीकार कीजिए और अपने राजधानी ले जाइए। राजा शांतनु अपने पुत्र को लेकर राजधानी आ गया और कुछ समय बाद उसे युवराज पद पर आसीन कर दिया। उस बालक का नाम देवव्रत था जिसने अपने सदाचार से सारे देश को प्रसन्न कर लिया।

मत्स्योदरी कौन थी? 

एक समय की बात है आद्रिका नाम की अप्सरा जमुना नदी में स्नान कर रही हैं और पास में ही एक ब्राह्मण देवता स्नान कर संध्या वंदना कर रहे थे। जल में मस्ती करती अप्सरा ने ब्राह्मण का पैर पकड़ लिया। तब उस अप्सरा को देखकर ब्राह्मण ने श्राप दे दिया कि तुम मछली हो जा। श्राप के डर से अप्सरा विलाप करने लगी और ब्राह्मण मुनि से प्रार्थना करने लगी। ब्राह्मण मुनि बड़े दयालु थे उन्होंने रोती हुई अप्सरा को बताया कि तुम मछली की योनि में चली जाओगी, फिर जब तुम्हारे पेट से दो मानव बच्चे जन्म लेंगे तब तुम्हारा श्राप से उधार हो जाएगा। तब से वह अप्सरा मछली होकर जमुना नदी में समय बिताने लगी। 

कुछ समय बाद एक धीवर (केंवट) ने उस मछली को अपने जाल में फंसा लिया। जब धीवर उस मछली को काट रहा था तो उसके पेट से दो मनुष्यकार बच्चे निकले। जिसमें एक बालक और दूसरी बालिका थी। दोनों बच्चों को देखकर धीवर संदेह में पड़ गया और उस मछली के प्राण पखेरू उड़ गए। धीवर दोनों बच्चों को लेकर राजा उपरिचर के पास गया। राजा उपरिचर ने पुत्र को अपने पास रख लिया और पुत्री को धीवर को सौंप दिया। आगे चलकर वही कन्या काली, मत्स्योदरी के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

उस कन्या के शरीर से मछली की गंध आती थी इसलिए उसका नाम मत्स्यगंधा भी पड़ा था। मत्स्यगंधा युवावस्था में महर्षि पराशर के संसर्ग से एक बच्चे को जन्म दिया जो आगे चलकर महाऋषि व्यास के नाम से मशहूर हुआ। यही महाऋषि व्यास ने भगवान गणेश के साथ मिलकर महाभारत की रचना की थी। 

पराशर ऋषि ने अपने तपोबल से मत्स्यगंधा के शरीर से दुर्गंध को समाप्त कर उसे गंध युक्त कर दिया था। मत्स्यगंधा के शरीर का सुंदर गंध एक योजन दूर तक फैल जाता था। इसी कारण उसे योजनगंधा के नाम से पुकारा जाने लगा। एक बार योजनगंधा के गंध से मोहित होकर हस्तिनापुर के राजा शांतनु उसे खोजते हुए उस धीवर के घर तक पहुंच गए और उन्होंने मत्स्यगंधा के पिता से उनकी बेटी के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा। 

परंतु धीवर (निषादराज) ने यह शर्त रखी कि विवाह के बाद मत्स्यगंधा का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बने। राजा शांतनु ने निषादराज की शर्त नहीं मानी क्योंकि वह देवव्रत को युवराज बना चुके थे। उसके बाद शांतनु मत्स्यगंधा के याद में चिंतित रहने लगे। जब यह बात राजा शांतनु के पुत्र देवव्रत को मालूम हुआ तो वे निषादराज के पास गए और योजनगंधा का विवाह अपने पिता से करने का आग्रह किया। 

निषादराज ने पुनः शर्त की बात दोहराई तब देवव्रत ने कहा कि मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मत्स्यगंधा का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा होगा और मैं आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। इसी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम देवव्रत से भीष्म पड़ा। उसके बाद योजनगंधा जिसका पिता का दिया हुआ नाम सत्यवती था शांतनु से विवाह करके हस्तिनापुर की रानी बन गई। आगे चलकर सत्यवती से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। 

चित्रांगद युद्ध में एक गंधर्व द्वारा मारा गया और विचित्रवीर्य हस्तिनापुर का राजा बना। विचित्रवीर्य की दो पत्नियां थी अंबालिका और अंबिका। विचित्रवीर्य की बिना संतान पैदा किए ही क्षय रोग से मृत्यु हो गई। वंश की रक्षा हेतु सत्यवती ने अपने पहले पुत्र महाऋषि व्यास को याद किया। 

महर्षि व्यास ने विचित्रवीर्य की पत्नियों अंबालिका से पांडु और अंबिका से धृतराष्ट्र को उत्पन्न किया। जिनसे फिर कौरव और पांडवों का जन्म हुआ। अतः हम कह सकते हैं कि महाभारत की नींव महान स्त्री सत्यवती थी।

महाभारत का युद्ध कहां हुआ था?

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध जिसे महाभारत का युद्ध कहते हैं कुरुक्षेत्र (हरियाणा) की धरती पर लड़ा गया था। यह युद्ध 18 दिनों तक लगातार लड़ा गया, जिसमें हजारों लोगों की जान गई। इस युद्ध में देश विदेश के राजाओं ने भाग लिया था। यह युद्ध दो परिवारों की नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच हुआ था।

जब युद्ध की घोषणा हुई तब श्री कृष्ण ने युद्ध के लिए भूमि की खोज शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने अपने दूतों को चारों दिशाओं में भेजा। आप जानते हैं कि वातावरण का मनुष्य के मन पर गहरा असर होता है। जब श्रीकृष्ण के दूत चारों दिशाओं से युद्ध का मैदान देखकर आए तो उन्होंने युद्ध के मैदानों के बारे में बताया। 

जो दूत कुरुक्षेत्र का मैदान देख कर आया था वह बताया कि उस भूमि क्षेत्र में काफी तेज हवा चल रही थी, जोरो से बारिश हो रही थी और वहां का वातावरण असहज था। उसने यह भी बताया कि वहां दो भाई आपस में लड़ रहे थे और एक ने दूसरे को मार दिया। 

तभी श्रीकृष्ण ने यह निर्णय लिया कि यही भूमि भाइयों को लड़ने के लिए सही होगी। वे जानते थे कि उस भूमि पर जाते ही वहां का वातावरण सभी के मस्तिष्क पर पड़ेगा और बिना रुकावट के युद्ध चलता रहेगा और ऐसा ही हुआ।

क्या महाभारत सच में हुआ था?

महाभारत महाकाव्य को हिंदू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। महर्षि वेदव्यास ने समस्त विवरण सहित महाभारत की रचना की थी। हिंदू धर्म की मान्यता है कि महाभारत में वर्णित घटनाएं सत्य और प्रमाणिक है। लेकिन दुनिया में ऐसे भी बहुत लोग हैं कि महाभारत को काल्पनिक मानते हैं। आज हम आपको पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर साबित कर देंगे की महाभारत सच है।

इसका सबसे बड़ा सबूत है श्रीमद्भागवत गीता। गीता मे जो वचन है वह सत्य है और उसको एक साधारण मनुष्य नहीं लिख सकता है। यह तो सभी जानते हैं कि गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में दिया था। जब श्री कृष्ण और अर्जुन हो सकते हैं तो पांडव और कौरव क्यों नहीं। इससे यह जाहिर होता है कि महाभारत की कथा सच है।

इसका दूसरा उदाहरण है कुरुक्षेत्र की लाल मिट्टी। हम जानते हैं की महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था जो आज भी हरियाणा राज्य में स्थित है। कहा जाता है कि तबाही ला देने वाले इस युद्ध के कारण वहां की मिट्टी लाल हो गई थी। पुरातात्विक विशेषज्ञों ने जब वहां खुदाई की तो लोहे से बने तीर और भाले मिले। जिन्हें जांच पड़ताल करने पर उन्हें 2800 ईसा पूर्व का बताया गया, जो लगभग महाभारत युद्ध के समय के हैं।

जब पांडव अज्ञातवास के समय पीपलू किला में ठहरे थे जो हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला में स्थित है। उस समय अर्जुन ने चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त कर उसे पत्थर पर उकेरा था जो आज भी वहां मौजूद है। इस चक्रव्यूह को अगर ध्यान से देखा जाए तो उसमें अंदर जाने का रास्ता तो दिखाई देता है लेकिन बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। यह किला आज एक ऐतिहासिक स्थल है।

ब्रह्मास्त्र ब्रह्मा द्वारा बनाया गया एक विनाशकारी परमाणु हथियार था। यह अस्त्र रामायण हो या महाभारत गिने-चुने योद्धाओं के पास ही होता था। रामायण में यह अस्त्र लक्ष्मण के पास था तो महाभारत में यह अस्त्र द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृष्ण, युधिष्ठिर, कर्ण और अर्जुन के पास था। यह अस्त्र पूरी दुनिया को तबाह कर सकता है। इसकी प्रमाणिकता तब उजागर हुई जब अमेरिका परमाणु बम बना रहा था। 

अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मास्त्र की संघार क्षमता पर शोध किया। 1939 से 1945 के बीच अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक टीम ने इस पर काम करना शुरू किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया तो धमाके का परिणाम कुछ वैसा पाया गया जैसा पौराणिक ग्रंथों में ब्रह्मास्त्र के बारे में बताया गया है। इस परीक्षण के बाद वैज्ञानिकों ने भी माना कि इस तरह के अस्त्र का इस्तेमाल महाभारत में किया गया था।

भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी। श्रीकृष्ण द्वारिका नगरी के राजा थे और यह नगरी जलमग्न हो गई थी। पूरा का पूरा शहर जल में समा गया था। पुरातत्व विभाग को गुजरात के पास समुद्र के नीचे एक शहर मिला है। जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है।

कौरवों ने पांडवों को जलाने के लिए लक्षागृह का निर्माण करवाया था। तत्पश्चात जिस सुरंग से निकलकर पांडव बाहर आए थे वह सुरंग आज भी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिला के बरनावा गांव में स्थित है।

ऐसे अनेकों उदाहरण है जिससे यह साबित होता है कि महाभारत का युद्ध सही में हुआ था। महाभारत कोई काल्पनिक नहीं बल्कि सत्य प्रसंग है।

निष्कर्ष

यदि आज के हमारे इस लेख को पढ़ने के बाद आप यह समझ पाए है कि Mahabharat Kab Hua Tha तो इस लेख को जड़ा से जड़ा लोगो के साथ साझा करे। ताकि सभी को महा ग्रंथ महाभारत की सभी सटीक जानकारियां आसानी से मिल सके। 

इस लेख में हमने आपको सभी जानकारियां हमने आपको सरल शब्दों में देने का प्रयास किया है। इस लेख पर कोई त्रुटि होने पर या फिर किसी प्रकार का सुझाव या विचार हमे कमेंट्स में बताना ना भूले। 

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